पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/८८

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वैदिक साहित्य और रीति-नीति . ५६ ऋग्वेदके दो ब्राह्मण है, एक ऐतरेय और दूसरा कौशिकीय । यजुर्वेदक्के भी दो ब्राह्मण हैं, एक शत्पथ और दूसरा तैत्तिरीय । सामवेदके तीन है, ताण्डय, पशि और छान्दोग्य । इन अन्योंमें कुछ वेद मंगोंके उपयोगके अरसर लिपे हैं। यज्ञ करनेकी रीतिपर बहुत वादविवाद है। इसके अतिरिक्त धार्मिक और नैतिक शिक्षा भी इनमें दी गई है जिसमें कही कहीं पर यढे गूढ सिद्धान्तोंका वर्णन है। (ख) उपनिषद्-ग्राहाणोंके अतिरिक्त वैदिक साहित्यमें जो पुस्तकें प्रामाणिक मानी जाती हैं उनमें इस प्रसिद्ध उपनिषद हैं। उनके नाम ये हैं :-केन, प्रश्न, कठ, मुण्डक, माण्डूक्य, ईश (या वाचस्पति), ऐतरेय, छान्दोग्य, तत्तिरीय, वृहदारण्यक* । उपनिषद् शन्दका अर्थ है "रहस्य", मानों :न पुस्तकोंमें उस विद्याकी शिक्षा है जिसको ज्ञानी लोग गुप्तविद्या अर्थात् ब्रह्म- शान कहते हैं। शाहजहां बादशाहके पुन दाराशकोहने इन ग्रन्योंका फारसी भापामें अनुवाद कराया और उनको ब्रह्मज्ञानके ग्रन्थोंमें सर्वोत्तम पदवी दी। उपनिपदोंके अनुवाद लातीनी, जर्मन और मनरेजी भाषाओं- में भी मौजूद हैं। यूरोपके कुछ विद्वानों और दार्शनिकोंने उनको बहुत उच्च कोटिकी पुस्तके माना है। कुछ विद्वानों के मतसे ग्यारह उपनिषद मान्य । देखो मध्यापक मेका सुबर व उपनिषदोंका पनुवादा मनोका आधुनिक समयका मिह दानिक शोपन हार लिखता है कि उपनिषदोंके हारा मुझे अपने जीवन में मानि प्राप्त हुई और मेरे पन्नकालम भी मुझे उन्होंगे शान्ति मिलेगी। इसकी सम्पतिम संसारको कोई पुस्तक अनके समान महलपूर्ण और उग से विचारों से सम्पन्न नहीं है। अध्यापक .