पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/९०

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वैदिक साहित्य और रीति-नीति ६१ शिक्षा और व्याकरण इनमेंसे पहला और तीसरा अर्थात शिक्षा और व्याकरण वास्तव में एक ही विद्याकी शापायें और अगरेजी शब्द 'प्रामर' में समाविष्ट हैं । - वैदिक व्याकरणमें सबसे प्रसिद्ध और नानी पुस्तक पाणिनि निकी रची हुई अष्टाध्यायी है । यह पुस्तक आकारमें बहुत छोटी सी है परन्तु इसमें मजसून इतना भरा हुआ है कि उसकी व्याख्या में पतञ्जलि अपिने एक भारी ग्रन्थ लिखा है। इस ग्रन्थको 'महाभाष्य' कहते हैं। अष्टाध्यायीमें पूर्ण योग्यता प्राप्त करनेके लिये महाभाष्यका अध्ययन आवश्यक है और पण्डितोंमें महाभाष्यके जाननेवालोंका पद बहुत ऊंचा होता है। वैदिक व्याकरण घड़ा पूर्ण व्याकरण है। इसमें भापाकी रचना और उसके परिवर्तनोंपर सम्यकरूपसे विचार किया गया है। व्याकरणने जैसी उन्नति संस्कृतमें की है धैसी किसी भी दूसरी भाषामें नहा की। वेदोंके विद्यार्थों के लिये अष्टाध्यायीमें निपुणता प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। छन्द और निरुक्त छन्दशास्त्रपर जो प्रसिद्ध पुस्तक है यह पिङ्गल ऋषिकी बनाई हुई है। उसको पिङ्गल छन्दसूत्र कहते . निरुकपर इसी नामकी एक पुस्तक यास्क मुनिको रवी हुई है । यह ऐसी पुस्तक है जिसमें अनेक चेद-मन्त्रोंके अर्थ दिये हुए हैं। हिन्दू पण्डित-समाजमें यह पुस्तक बड़े आदरकी दृष्टिसे देखी जाती है। वेदार्थके सम्बन्धमें इसका प्रमाण सर्वोपरि समझा जाता है। पुस्तकके विपयसे ऐसा जान पड़ता है कि जिस कालमें इस पुस्तककी रचना हुई उस कालमें भी वेदार्थके विषयमें बहुत भिन्नता हो गई थी। इससे यह परिणाम निकलता है कि