६४ भारतवर्षका इतिहास से ऋषि ऐसे हैं जो शब्द और अर्थ दोनोंको ईश्वरीय खीकार वेदोंका धर्म एक आर्य-समाजियोंको प्रतिज्ञा है कि वेदों में ईश्वरकी पूजा है एक ईश्वरकी पूजाके सिवा और किसीको पूजा नहीं है। वेदमें जिन नाना देवी देवताओं- या तत्लॉकी का उल्लेख है वे भी सब परमात्माही के नाम पूजा ! है। यहांतक कि वेदों में भी इस बातकी भीतरी साक्षी विद्यमान है कि अग्नि, इन्द्र, वरुण और मित्र आदि जो देवता पूज्य और आराध्य घतलाये गये हैं सब एक ही परमेश्वरके नाम हैं। सनातनधर्मी पण्डित यह तो स्वीकार करते हैं कि वेदोंमें एक ईश्वरकी पूजा है, परन्तु वे यह भी मानते हैं कि ये नाना देवी देवता ईश्वरके भिन्न भिन्न गुण हैं, और इनका अलग अस्तित्व भी है । वेदोंमें कोई विवाद नहीं । इनमें या तो प्रार्थ- नायें हैं या विधियां हैं। परन्तु कुछ भी हो प्रायः सभी विद्वान- क्या सनातनधर्मी, पपा आर्यसमाजी और क्या यूरोपीय, इस बातमें एकमत है कि वेदोंमें मूर्तिपूजा नहीं है, और न मूर्तिका और न मन्दिरोंका उल्लेख है। वैदिक धर्मको वेदोंकी भाषा अतीव गहन है। उसका - समझना बहुत कठिन है । तोभी कुछ मन्त्र सरल और स्पष्ट हैं और उनके विषय बहुत उसता ही उच्च हैं। मेरी सम्मतिमें संसारकी शायद हो कोई दूसरी पुस्तक ऐसी.हो जिसमें इस प्रकारके उच्च चिप योंका ऐसी सरलता पूर्वक वर्णन किया गया हो । चैदिक धर्म उन लोगोंकां धर्म था जो पानी प्रकृतिकी सरलता और सवाई से अपने हृदयके गम्मोर भावोंको अति सादे और स्पष्ट शब्दोंमें प्रफाश करते थे, और जिन्होंने हृदयको पवित्रता और भावोंको सरलता और . v
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