, वैदिक धर्म . उच्चतामें बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त किया था। अतएव चाहे ये पुस्तके अपीरुपेय मानी जाय या पौरुषेय, इनके विपय ऐसे हैं जिनसे भारतवर्षके प्रत्येक मनुष्यको, चाहे वह फिसो भी मत या सम्भ- दायका हो, कुछ न कुछ परिचय अवश्य होना चाहिये । कई मन्त्र तो अपनी सुन्दरता, अपनी रचना, और अपने उच्च भावों- की दृष्टिसे संसारमें अनुपम हैं। उदाहरणार्थ आगे दिये मन्त्र निर्भयता सिखलाते हैं:- यथा द्योश्च पृथिवी च न विभीतो नरिष्यत । एवामे प्राण मा विभः॥१॥अथाहश्च रात्री च न विभीतो॥२॥ यथा सूर्यश्च चन्द्रश्च० ॥३॥ यथा ब्रह्म च क्षत्रं च० ॥४॥ यथा भूतं च भन्यं च न पिभीतो न रिष्यतः ॥५॥ एचामे प्राणमाविभः ॥६॥ गर्थ-९-जैसे धो और पृथ्वी निर्भय हैं और कमी नुकसान नहीं उठाते वैसे ही मेरी आत्मा अभय रहे। २-जैसे दिन और रात निर्भय हैं और कभी नुकसान नहीं उठाते वैसे ही मेरी यात्मा अमय रहे। ३-जैसे सूर्य और चन्द्र मभय हैं और कभी नुकसान नहीं उठाते वैसे ही मेरी आत्मा अभय रहे। ४ जैसे ब्राह्मणत्व और क्षत्रियत्व अभय हैं और कमी नुक- सान नहीं उठाते वैसे ही मेरी आत्मा अभय रहे। ५ जैसे भूत और भविष्यत् अभय हैं और कभी नुकसान नहीं उठाते से ही मेरी अत्मा अभय रहे । (अथर्व वेद, काण्ड २, सूत्र १५, मन्च १-५) अभयं मित्रादभयममित्रादमयं ज्ञातादभयं परोक्षात् । , अभयं नतमभयं दिवा नः सर्ग आशा मम मित्रं भवन्तु । (अथर्व कां० १६ सू०१५मं०६।) अर्थ-हमें मिनसे भय न हो, हमें शत्रुसे भी भय न हो। जो
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