पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१२३

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भारत के राजकुमार ११३ आक्रमण वा भारत के अन्दर हो किसी अन्य रियासत की लूट मार के समस्त भयों से सब प्रकार सुरक्षित कर दिया है। प्रत्येक रियासत के निवासी अपने ही राजा की प्रजा हैं। वही उन पर टैक्स लगाता है, अपने कानून बनाता है और जिस प्रकार चाहता है न्यायपूर्वक उन पर शासन करता है। उनकी प्रजा सब जगह बृटिश भारत में पूरी पूरी स्वतन्त्रता से व्यापार कर सकती है, और इसके बदले में कुछ दिये विना ही बृटिश भारत की बन्दर- गाहें, रेलें तथा बाजार काम में ला सकती हैं। प्राचीन काल में एक रियासत के राजा को बाहर के आक्रमण का सदैव भय रहता अतएव प्रत्येक शासक को अपनो तथा अपनी रियासत की रक्षा के निमित्त पूरा पूरा धन लगा कर सेना रखनी पड़ती थी, किन्तु अब इस विषय में उसे कुछ चिन्ता नहीं करनी पड़ती; अतः उन समस्त लाभों में से जो बृटिश शासन के कारण भारतीय रियासतों को पहुंचे हैं, शान्ति सुख सब से बड़ा लाभ है। ६-दूसरी ओर इन राजकुमारों के कुछ कतव्य तथा अधिकार भी हैं। कोई रियासत अधीश किसी से युद्ध व सन्धि नहीं कर सकता। यह उसके महाराजा का कर्तव्य है, जो उनकी रक्षा करता है। यदि कोई रियासत का राजा चाहे तो अपनी रियासत के सुप्रवन्ध तथा अशान्ति दूर करने के लिये हथियारबन्द पुलिस रख सकता है। आवश्यकता के समय बृटिश साम्राज्य की सहा- यता के लिये वह एक सैनिक दस्ता भी रख सकता है। यह दस्ता “इम्पोरियल सर्विस कोर" अर्थात् "साम्राज्य के निमित्त युद्ध करनेवाला सैन्य दल" कहलाता है ७--प्रत्येक रियासत के अधोश का यह कर्तव्य है कि वह अपनी प्रजा पर न्यायपूर्वक तथा उचित रीति से शासन करे, और उस पर किसी प्रकार अत्याचार न करे, न किसी बुरो प्रथा का,