पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२०९

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भारत का शासन और प्रबन्ध (६) न्याय और अदालतें १-हमारी अदालतों का आजकल जो प्रवन्ध है, वह १८६१ ई० में आरम्भ हुआ है जब भारत में हाई कोर्ट का ऐक पास हुआ था और कलकत्ता मदरास और बम्बई में हाई कोर्ट खोले गये थे। बादशाह ने इन में जज नियुक्त किये। इन में से एक तिहाई वारिस्टर-ऐट-ला थे ; इतने ही डिष्ट्रिक जज और कानून जाननेवाले लोग थे। १८६८ ई० में इलाहाबाद में हाई कोर्ट और लाहौर में एक चीफ़ कोर्ट खुला। २-यों तो भारतवर्ष के सब जिलों में एक एक सिविल और सेशन जज है पर कार्य की अधिकता पर उसे असिस्टेण्ट भी मिल जाता है। हर एक सूबे के जिलों की अदालत उसके हाई कोर्ट या चीफ कोर्ट के आधीन है जो प्राणदण्ड के हर एक फैसले की अन्तिम आशा सुनाती है। ३-सेशन अदालत के आधीन तीन दर्जी के मजिस्ट्रेटों की कचहरियां हैं। अब्बल दरजे के मजिस्ट्रेट दो बरस की कैद और एक हजार रुपये जुरमाना करने का अधिकार रखते हैं। दूसरे दरजे के छ महीने की कैद और दो सौ रुपये तक जुरमाने का और तीसरे दरजे के एक महोने को कैद और पचास रुपये जुरमाने का। डिपटी कमिशनर या कलकर भी अव्वल दरजे के मजिस्ट्रेट होते हैं। -नोची अदालतों के फैसलों की अपील ऊंची अदालतों में हो सकती है। दूसरे और तोसरे दरजे के मजिस्ट्रेट के हुक्म की अपोल जिला के मजिस्ट्रेट के यहां और उसके फैसले का सेशन जज के अदालत में और उसके हुक्म का हाई कोर्ट या चीफ़ कोर्ट में हो सकती है। ४-