पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२०८

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१६८ भारतवर्ष का इतिहास और लगभग सात लाख चौकीदार हैं। इन सब का सालाना खर्च लगभग चार करोड़ होता है। हर जिले में एक जेलखाना अपने अपने सुपरिन्टेण्डेण्ट के आधोन होता है। पुराने समय में लोग यह समझते थे कि अपराधियों को जेलखाने की सजा केवल दुख देने और औरों को चेता देने के लिये दी जाती थी। पर अब सब मुलकों में गवर्नमेण्ट इस बात का भी उद्योग करती है कि चोरों का स्वभाव सुधारा जाय। बहुतेरे केवल इस कारण चोरो करते हैं कि उनको जीविका का न कोई और उपाय है और न वह कोई पेशा या हुनर जानते हैं। ऐसे लोगों को जेलखानों में अब पेट पालने के गुन सिखाये जाते हैं जैसे छपाई, खेमे दोज़ो का, बढ़ई या लुहार का काम, बैत को चीज़ बनाना और दरी बुनना। अगले दिनों में कैदियों के साथ बड़ो निठुराई की जाती थी। कहा जाता है कि कहीं कहों जेलखाने जाना मरने को जाना समझा जाता था। अब कैदियों की बड़ी देख भाल की जातो है उन्हें अच्छा खाना खाने को मिलता है और कायदे से कसरत कराई जाती है। वह सबेरा होते हो उठते हैं खाना खाते हैं ; सबेरे सबेरे काम करते हैं, फिर आराम करते हैं और दोपहर को खाना खाते हैं। फिर काम करते हैं। तोसरी बार उन्हें सन्ध्या समय खाना मिलता है। फिर रात को बन्द कर दिये जाते है। जिनकी चाल चलन अच्छी होती है और मिहनत से काम करते हैं वह बहुधा कद की मियाद भुगतने से पहिले ही छोड़ दिये जाते हैं। गवर्नमेण्ट कैदियों से ऐसा सलूक क्यों करती है। इस लिये कि उन्हें मिहनत करने का हौसला हो जाय और उनकी प्रकृति सुधर जाय जिससे वह जेलखाने से निकल कर बाहर भले मानुस बन जायं, चैन से दिन काटें और ईमानदारो से पैसा कमायें।