पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२२

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१२ भारतवर्ष का इतिहास हानि आप लोगों की हुई है वह भर दो जायगी। साथ ही साथ चन्द्रनगर में फरासीसियों को भी पत्र लिखा कि आप आयें और मेरी सहायता करें। कर्नल क्लाइव ने नवाब की दोरङ्गी बातों का हाल शीघ्र हो जान लिया और चन्द्रनगर पर चढ़ाई करके उसे जीत लिया। ४-सिराजुद्दौला को गद्दी पर बैठे एक बरस से कम हुआ था। परन्तु इस थोड़े से समय में अपने बुरे प्रबन्ध और निर्दयीपन से उसने प्रजा को तंग कर डाला था। प्रजा चाहती थी कि यह निकल जाय तो अच्छा है। उसके बड़े बड़े अफसरों और दरबारियों ने सलाह की कि उसको गद्दी से उतार कर उसके सेनापति मीरजाफ़र को उसकी जगह नवाब बना दें। मीरजाफर ने को लिखा और सहायता की प्रार्थना को और यह सलाह उसे दी कि आप सिराजुद्दौला पर चढ़ाई कीजिये तो मैं एक बली सेना लेकर आपका साथ दूंगा। ५-कर्नल क्लाइव अपनी सेना लेकर उत्तर की दिशा को चला। सिराजुद्दौला के डेरे पलासी नामक गांव पर पड़े थे। पचास हज़ार प्यादे, अठारह हज़ार सवार, पचास तोड़ें और कुछ फरासीसी सैनिक सिराजुद्दौला के साथ थे। क्लाइव के पास ग्यारह सौ गोरे, दो हज़ार हिन्दुस्थानी सिपाही, और दस छोटो तो थीं। २३ वों जून सन् १७५७ ई० को युद्ध आरम्भ हुआ। मीरजाफ़र अपने बचन पर दृढ़ न रहा और अंगरेजों का साथ न दिया परन्तु वह इसी आसरे में था कि देखें कौन जीतता है। दिन भर अगरेजों ने गोले वरसाये तीसरे पहर तीन बजे जब क्लाइव के कुछ सैनिक गोला बारूद से मर चुके थे उसने अपनी सेना को धावा मारने की आज्ञा दी। नवाब और उसके सैनिक भाग निकले और अङ्गारेजों की जीत हुई। सिराजुद्दौला 1