भारतवर्ष का इतिहास पर बैठादें तो मैं उनकी शर्ते मान लू। १८०२ ई० में बसोन के किले में जो बम्बई से बीस मील उत्तर है पेशवा ने सन्धिपत्र पर हस्ताक्षर किये और यह प्रतिज्ञा की कि अब से पेशवा के पद से मैं मरहठा सरदारों का मुखिया न बनूगा, न अङ्गरेजों की अनुमति बिना और किसी मरहठा सरदार से कोई सम्बन्ध रक्खंगी, और अपने देश की रक्षा के लिये अगरेजी सेना रक्खंगा। इस फौज के खर्चे के लिये पेशवा ने कुछ जिले कम्पनी को दिये जो अब बम्बई हाते में नाना फड़नवीस मिल गये हैं। ३- इसी समय गुजरात के राजा गायकवाड़ ने पेशवा को तरह अगरेजों के साथ एक सन्धि की जिसके अनुसार उसने अङ्गरेजों को भारत का सम्राट मान लिया ; अपनो सहायता के लिये अपने देश में अगरेजी सेना रखना स्वीकार किया और उस सेना का खर्चा देने को प्रतिज्ञा की। ४-दौलत राव सिन्धिया और राघोजी भोसला ने सन्धि करना स्वीकार न किया, बसीन के सन्धिपत्र का हाल सुन कर बहुत बिगड़े और इस बात का उद्योग किया कि होलकर टूट कर उन से मिल जाय और अगरेजों से लड़ें। दोनों ने अपनी पलटने सजी और लड़ाई की तैयारी कर दी। ५-लार्ड वेलेजली ने भी हाल सुना। वह भी लड़ाई के लिये तैयार हो गया। जनरल लेक सेना लेकर सिन्धिया का सामना करने के लिये उत्तरीय भारत में पहुंचा। करनैल वेलेजली और