पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/७४

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६४ जब भारतवर्ष का इतिहास ५-इसी समय टीपू के बेटों ने जो बेलोर के किले में रहते थे और अंगरेजों से पेनशन पाते थे, देशो सिपाहियों को भड़का कर उनसे विद्रोह करा दिया। बहुत से अंगरेज़ मारे गये। फिर भी थोड़े से अंगरेज़ बहादुरो के साथ किले में बैठे लड़ते रहे। अरकाट से मदद पहुंची बिद्रोह दब गया और टोपू के बेटे कलकत्ते भेज दिये गये और वहीं रहने लगे। ६-इसके पीछे ला. मिण्टो गवर्नर जनरल हुआ। उसने सात बरस तक शासन किया और देशी रईसों को बिलकुल नहीं छेड़ा। पर यह कोई अच्छी बात न थी क्योंकि वह सब आपस में लड़ते भिड़ते रहे और अंगरेजों पर धावा करने को तैयारी करते रहे। यह भी क्या करता इङ्गलिस्तान से जैसे हुक्म आते थे उन्हों के अनुसार चलता था। ७--रानी एलिज़बेथ ने सन् १६०० में ईस्ट इंडिया कम्पनो को एक आशापत्र दिया था जिसके अनुसार कम्पनी को भारत के साथ व्यापार करने की आज्ञा मिल गई थी। इस के पोछे नई नई आज्ञायें निकलती रहीं। सन् १७७३ के पीछे जव रेग्युलेटिंग ऐक नाम का कानून पास हुआ तब से यह दस्तूर हो गया कि बोस बीस बरस पर कम्पनो को नया आज्ञा पत्र मिले। दो सौ तेरह बरस तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अकेले इस ध्यापार करने का अधिकार रहा और कोई अंगरेज़ व्यापारी देश में व्यापार करने का अधिकारी न था। सन् १८१३ में इङ्गलैण्ड को पारलिमेण्ट ने यह ठोका तोड़ दिया और आज्ञा दे दी कि जिसका जो चाहे इस देश से ध्यापार करे। -फिर भी बीस बरस तक इस आज्ञा से किसी को लाभ न हुआ क्योंकि कम्पनी का एक पुराना नियम था कि बिना कम्पनी को आशा के कोई अंगरेज़ कम्पनो के इलाका में घुस नहीं सकता था। 1