पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/७९

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लाड हेस्टिङ्गस् ६६ १८१८ ई० में पिंडारियों का नाम भी न रहा और भारतवासी उनके अत्याचार से छुटकारा पा गये। फिरा। ६६-लार्ड हेस्टिङ्गस (समाप्ति ) १-इसी अवसर पर बाजीराव पेशवा ने यह समझा कि अगरेज़ पिंडारियों को न जीत सकेंगे और एक बड़ी भारी सेना इकट्ठी करके जो अगरेज़ो सेना पूना के पास खिड़की में रहती थी उस पर धावा मार दिया। पर उसके बहुत से सिपाहो मारे गये और उसे लौटना पड़ा। कुछ दिन इधर उधर देश में मारा मारा अन्त को उसने अपने को अङ्ग्रेजों के हवाले कर दिया । लार्ड हेस्टिङ्गस् जानता था कि इसको बात का विश्वास नहीं है क्योंकि यह कई बार प्रतिज्ञा भङ्ग कर चुका था। इस लिये उसने पेशवा का सारा देश ले लिया और एक बड़ी पेनशन करके उसे कानपुर के पास बिठूर भेज दिया। २-नागपुर का बूढ़ा राजा राघोजी भोसला इससे कुछ पहिले मर चुका था। उसका भतीजा अप्पा साहब नागपुर का राजा था उसने अङ्गरेजों के साथ सन्धि करलो थो; पर छिप छिप कर पेशवा के साथ कपटप्रबन्ध कर रहा था। जब उसने सुना कि बाजोराव ने खिड़की पर हमला कर दिया है, तो उसने भी १८१७ ई० में अगरेजों के रेजीडेंट पर जो नागपुर के पास सीता- बल्दी की पहाड़ी पर ठहरा था धावा मार दिया। रेजीडेंट जेनकिन्स के पास गोरों को सेना कुछ भी न थी, कुल चौदह सौ हिन्दुस्थानी सिपाही अगरेजी अफसरों की कमान में थे। अप्पा साहेब के पास अठारह हज़ार को भीड़ थी। वह समझता था कि अङ्गरेज़ों के थोड़े से सिपाहियों को पीस डालंगा। रात से