पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/८७

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I लार्ड विलियम बोण्टङ्क और उनको अगरेजों से इतना काम पड़ने लगा कि उनको अगरेजी भाषा को लिख पढ़ लेने और बोलने कि बड़ो आवश्यकता हुई। इसके सिवाय अङ्गरेज़ो किताबों में परम उपयोगी विद्या और कला का इतना भंडार भरा है जो भारत की भाषाओं में कहीं पाया नहीं जाता। भारतवासो बिना अङ्गरेज़ो सोखे इस विद्याधन से कैसे लाभ उठा सकते थे। संसार को किताबों में जो अच्छो और काम की बातें है सब अङ्गरेज़ी किताबों में भरी हैं ; क्योंकि अगरेज़ दुनिया भर में घूमते फिरते, हर देश की भाषा सोखते और जो उपयोगी बात किसी दूसरो भाषा में देखते है उसका अपनो भाषा में अनुवाद कर लेते हैं। इस कारण अङ्गरेजी भाषा मानो एक बड़ा खज़ाना है जिस में संसार भर की बुद्धि और विद्या इकट्ठा करके रक्खी है। इस खजाने को कुंजी अङ्गरेजी भाषा का ज्ञान है जिससे यह खजाना खुल सकता है और जो कुछ कोई चाहे इस में से ले सकता है। बेण्टिङ्क ने आज्ञा दो कि भारतवासियों को अगरेजी भाषा सिखाने के लिये अङ्ग्रेजो मदरसे खोले जायं। आज कल इन स्कूलों की संख्या दिन दिन बढ़ती चली जा रही है। यहां तक कि अब अङ्रेजी स्कूलों की संख्या हजारों तक पहुंच गई है। E-भारत को प्रजा बहुत सो जातियों और समाजों में बंटी है। हर जाति की एक अलग भाषा है। एक समय था कि मदरासी पंजाबी की भाषा न समझ सकता था। क्योंकि दोनों की भाषायें अलग थों। अब पंजाबी भदरासी आपस में अङ्रेजी में बात कर सकते हैं क्योंकि अगरेजी भाषा पंजाब और मदरास दोनों के स्कूलों में पढ़ाई जाती है। इस में बड़ा लाभ यह है कि पंजाबो और मदरासी एक ही भाषा में बोल सकते है क्योंकि दोनों एक ही बादशाह की प्रजा हैं और एक ही देश में रहते हैं। १०–जब भारत में मुग़ल और अफ़ग़ान राजा थे तो अदालतों -