पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/९०

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८० राजा भारतवर्ष का इतिहास नहीं देता था। प्रजा कंगाल हो गई और घबराने लगी और १८३० ई० में अपने राजा से बिगड़ गई। तव बेण्टिङ्क ने झगड़ा दबाने और शान्ति स्थापन करने के लिये एक सेना भेज दो। को पेनशन कर दी गई और पचास बरस तक अगरेजो अफसरों ने मैसूर का प्रबन्ध किया जिसका फल यह हुआ कि देश धन संपति से भरापुरा हो गया। प्रजा सुचित और प्रसन्न देख पड़ने लगी। राजा को आज्ञा मिल गई कि किसी को गोद ले ले। जब यह गोद लिया हुआ लड़का सयाना हुआ तो मैसूर का राजा बना दिया गया और अगरेजी प्रबन्ध उठा लिया गया। ३-१८१३ ई० तक अगरेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनो को भारत और चोन में बिना किसी के साझे के घ्यापार करने का अधिकार था। १८१३ ई० में लाई हेस्टिङ्गस् के समय में भारत का ध्यापार सब के लिये खोल दिया गया और यह घोषणा कर दी गई कि जिसका जी चाहे भारत में व्यापार करे। हम ऊपर लिख चुके हैं कि इस आज्ञा से किसी को कुछ लाभ न हुआ। क्योंकि यह नियम था कि बिना ईस्ट इण्डिया कम्पनी की आज्ञा के कोई भारत में आकर बस नहीं सकता था। बोस बरस पीछे १८३३ ई० में इङ्गलैण्ड की पारलिमेण्ट ने कम्पनो को आज्ञापत्र तो दे दिया पर यह भी नियम कर दिया कि अब से कम्पनो भारत में व्यापार न करे, देश का शासन करे और प्रबन्ध रक्खे। मानो अब से यह नियम हो गया कि जिस अङ्गरेज़ का जो चाहे भारत में रहे। किसी से आज्ञा लेने का काम न रहा। इसपर बहुत से अगरेज़ व्यापार करने और देश देखने भारत में चले आये। व्यापार की बड़ी उन्नति हुई और भारतवासियों को भी बड़ा लाभ हुआ। इन्हों दिनों चीन का व्यापार भी खुल गया और वहां किसी तरह की रोक टोक न रहो।