पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१०१

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शारदा लिपि ७५ बदनं यदीयमभूत्तराङ्गण्डकिताजष्टिः । नानाविधालङ्कतिमन्त्रि- वैशविशेषरम्या गुणशालिनी या। मनोहरत्वं सुतरामवाप स- चेतसा सत्कविभारतीय ॥ शृङ्गारसिन्धार किमियन्न वेला किंवा मनोभूतरुमञ्जरौ स्यात् वमन्तराजस्य नु राज्यलक्ष्मीस्त्रैलोक्यसौन्दर्य- लिपिपत्र २६वां यह लिपिपत्र राजा विदग्ध के मुंगल गांव के दानपत्र' में नय्यार किया गया है. इसमें 'हु बि- लक्षण है, कहीं कहीं ' और 'म' में स्पष्ट अंतर नहीं है. 'व' तथा 'य में भंद नहीं है, 'ए' की मात्रा तीन प्रकार में लगी है जिनमें में एक आड़ी लकीर है ( दम्वो, णे ) और 'ध', 'थे'. 'स्था और 'स्थि' में 'थ का रूप विकृत मिलता है. लिपिपत्र -६ वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- ओं म्वस्ति ॥ श्रीचण्प(म्य)कावास कात्यग्ममहारकमहाराजाधिराज- परमेश्वरश्रीमधुगाकरवर्मदेवपादानुध्यान[:] परमव्र(ब्रह्मण्यो निम्ति - नसच्छासनाभिप्रवृत्तगुरुवृत्तदेवतानुशतसमागतशाम्बकुशन- नया ममागधितविहन्जनहृदया नयानगतपौरुषप्रयोगा- वाप्तचिवसिद्धि सम्यजिताभिकामिकगुगासहिततया फ- लिस इव मार्गतरुः] | मर्वसत्वा(त्त्वाश्रयनौ णो यो मापनाम्नाय आदित्यवशा(वंभग)! :] परममाहेश्वरी ) श्रीभागमतीदेव्या व्यां समुत्पन्न[:] लिपिपत्र ३० या यह लिपिपत्र मामवर्मा के कुलन के दानपत्र , चना में मिले हुए मोमवर्मा और श्रामट के दान- पत्र', राजानक नागपाल के दागकाठी (देविकोटि) के शिलालग्न', आरिगांव के शिलालग्न नथा जालंधर के राजा जगच्चंद्र के ममय की शक मंवत १६ काकिक मंवत् ८० (ई म. २०४) की कांगडा जिले के कारग्राम के वैजनाथ । वैद्यनाथ के मंदिर की दो प्रशस्तियों में तय्यार किया गया है और हममें मुग्यम्प अचर ही दिये गये हैं कुलत वं. दानपत्र में 'च के याई नरफ के अंश के नीचे के भाग में गांट मी लगाई है और ह' की वही लकीर के मध्य में ग्रंथि बनाकर उमके और 'फ' के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है वैजनाथ की प्रशस्निगां के 'ई को उक्त अक्षर के प्राचीन रूप में खड़ी कभी कभी लगने लगा और यंगला, शिल तथा दिपा लिपि में दाहिनी तरफ. नीचं गांठचाली वक्र म्वा के कप में उसका अब तक प्रयोग होता है ( देवीलिपिपत्र जार मसलिपियों की वर्णमालाओं में ककको बार की फा.एचं स्ट, प्लट १७. इन तीन लकीरों में से पहिली की प्राकृति 2 सी है और दुसरी व नीसरी खड़ी लकीरें हैं जिनमें म एक अनावश्यक है शुज पाठ मापणान्ययः' होना चाहिये. फो: चं स्टे. प्लेट २४ से फो; एँ चं स्टे, प्लेट २५ से. १. फो: एवं स्टे प्लेट ३० से . . ई; जि. ६. पृ ३०१ के पाम के प्लट से. इन प्रशस्तियों के समय के लिये देखो ऊपर पृ. ७३ टिप्पण बृ.प: प्लेट प्राचीन अक्ष की पंक्ति प्रथम से . .