50 तेलुगु-कमढ़ी लिपि घसीट है. 'ई' की दो बिंदियों के बीच की खड़ी लकीर को नीचे से बाई भोर घुमा कर सिर तक ऊपर बढ़ाने से ही उक्त भक्षर का यह रूप बना है. 'ब' (ऋग्वेद के 'ह' का स्थानापन) पहिले पहिल इसी दानपत्र में मिलता है जिसके मध्य भाग में एक माड़ी लकीर जोड़ने से दक्षिण की लिपियों का 'र' बना हो ऐसा प्रतीत होता है. इस दानपत्र से दिये हुए अक्षरों के अंत में 'ळ', 'लह और 'क' अक्षर दिये हैं वे इस दानपत्र से नहीं हैं. 'ळ' और 'व्ह' पूर्वी चालुक्य राजा विजया- दित्य दूसरे के एडुरु के दानपत्र' से और 'ळ' उसी वंश के राजा अम्म (प्रथम) के मछलीपटन (मसु- लिपटम्, मद्रास इहाते के कृष्णा जिले में ) के दानपत्र से है. लिपिपत्र ४७वे की मृल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- गष्टकटकुलामलगगनमृगलाइनः बुधजनमुखक- मलांशुमाली मनोहरगुणगणालंकारभारः ककराज- नामधेयः तस्य परः स्ववंशानेकपसंघातपरंप- राभ्युदय कारणः परमरिषि घि)ब्राह्मणभक्तिसात्पर्यकुश- लः समस्तगुणगण गणाधिब्बोनो(?छाम) विख्यातसबलोकनिरुप- मस्थिरभावनि(वि)जितारिमण्ड नः यस्यै म(व)मासौत् । जित्वा भू. पारिवानाम्गन)यकुशलतया येन राज्यं कृतं यः लिपिपत्र ४८ वां यह लिपिपत्र पूर्वी चालुक्यवंशी राजा भीम दूसर (ई. स. ६.४ से ६३५ तक) के पागनवरम् के दानपत' से और उसी वंश के अम्म दूसरे ( ई स. ६४५ से ६७० तक ) के एक दानपत्र' से तय्यार किया गया है. इन दोनों दानपत्रों की लिपि स्थिरहस्त और सुंदर है. लिपिपत्र ४८वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- स्वाम्न श्रीमता सकलभुवनसंन्या(य)मान- मानव्यसगौगो)चाणा(णां) हारोतिपुषाणां कौशिकौवरप्र- सादलन्धराज्याना माधु,त)गणपरिपालितामा स्वा- मि[महामेनपादानुध्यासान भगवनारायणप्रसा- दममासादितवरपराइला(छ)नेधणधवाशौक्त- लिपिपत्र ४८ वां यह लिपिपल पूर्वी चालुक्यवंशी राजा राजराज के कोरुमेलिल से मिले हुए शक सं. ६४४ (ई. स. १०२२) के दानपत' से तय्यार किया गया है. इसकी लिपि घसीट है और इसके अ, भा, इ, है, उ, ख, ग, च, ज, ठ, ड, ढ, त, थ, ध, न, क, य, र, ल और स वर्तमान काही या तेलुगु लिपि के उक्त अधरों से मिलते जुलते ही है. अचरों के सिर बहुधाv ऐसे बनाये हैं और मनुस्वार १. प. जि. ५. पृ १२० और १९१ के बीच के प्लेट की क्रमशः पंक्ति ११ और २० से २ : जि.५. पृ. १३५ के पास के प्लेट की पंकि ३२. . .एँ, जि. १३, पृ. २१४ और २१५ के बीच के प्लेटो से. ...एँ, जि.१३, २४८ र २४८ के बीच के प्लेटों से. - ये मूल पंक्तियां भीम (दूसरे) के दानपत्र से है...एँ; जि. १४, पृ. ५० और ५३ के बीच के प्लेटो से
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