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पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/११४

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Os प्राचीनलिपिमाला. को कहीं अक्षर की दाहिनी ओर ऊपर की तरफ और कहीं अक्षर के सामने मध्य में धरा है. इस दानपत्र से दिये हुए अक्षरों के अंत में जो भ,मा, ख, र, ऊ, वा और उपचर दिये हैं वे इस ताब- पत्र से नहीं है. उनमें से भ, मा, ख और र ये चार अक्षर जान्हवी(गंगा)वंशी राजा परिवर्मन् के जाली दानपत्रा से लिये गये हैं. इस पुस्तक में जाली दानपत्रों से कोई लिपिपत्र नहीं बनाया गया परंतु उक्त अक्षरों के ऐसे रूप अन्यत्र नहीं मिलते और उनका जानना भी आवश्यक होने से ये यहां दिये गये हैं. बाकी के तीन अक्षरों में से 'ऊ' और 'खा' पूर्वी चालुक्य राजा विष्णुवर्द्धन पांचवें (कलिविष्णुषर्द्धन ) के दानपत्र से और अंतिम 'उ' एहोले के नारायण के मंदिर के शिलालेख से लिया गया है. लिपिपत्र ४६वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- औधासः पुरुषोत्तमस्य महतो नारा- यणस्य प्रभो भीपंकरहाइमूष जगतस्माष्टा स्वयंमूलतः बजे मानससनुरचिरिति यः] नम्मान्मुनेरचितस्सोमो वंशकामांशुरुदत[:] बौक- एट(ठ)एडामणिः । तस्मादासोलधामूोर्डधो बध- नुतस्ततः ज(जा)तः पुरूरवा नाम चक्रवत्तो नौं] स- लिपिपत्र ५०वां. यह लिपिपत्र काकतीयवंशी राजा रुद्रदेव के शक सं. १०८४ (ई. स. ११६२) के अनंकोंड के शिलालेख और उसी वंश के राजा गणपति के समय के शक सं ११३५ (ई. स. १२१३) के घेब्रोल के शिलालेख से तय्यार किया गया है अनंकोंड के लेख से मुख्य मुख्य अक्षर ही दिये गये हैं. इस लिपिपत्र में दिये हुए अक्षरों में से अ, आ, इ, ई, उ, मो, औ, स्व, ग, च, छ, ज, झ,ट, ठ, , १, ण, त, थ, घ, न, थ, भ, म, य, र, ल, श और स वर्तमान कनड़ी या तेलुगु के उक्त अक्षरों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं. चेबोलू के लेख के 'श्री' में 'शी' बना कर उसके चौतरफ़ चतुरस्र सा बना कर उस के अंत में ग्रंथि लगाई है यह सारा चतुरस्रवाला अंश 'रका ही विलक्षण रूप है 'या' और 'स्थ' में '8' और 'x' का केवल नीचे का आधा हिस्सा ही बनाया है. अबोलू के लेख के अक्षरों के अंत में ऋके तीन रूप और ऐ अक्षर अलग दिये हैं. उनमें से पहिला 'ऋ'चालुक्य- वंशी राजा कीर्तिवर्मन् ( दूसरे ) के पक्कलेरी से मिले हुए शक सं. ६७६ (ई. सं. ७५७) के से, दूसरा बनपल्ली से मिले हुए अन्नवेम के शक सं १३०० (१ १३०१ ) के दानपत्र से, और तीसरा 'श' तथा 'ऐ' दोनों चालुक्यवंशी राजा पुलुकोशन [प्रथम] के जाली दानपत्र" से लिये गये हैं. दानपत्र १...एँ: जि . पृ २११ और २१० के शव के प्लेटों से. ...जि १३, पृ १८६ और 1८७ के बीच के प्लटों मे. लिपिपत्र ४ में दिये हुए अक्षरों के अंतिम अक्षर के ऊपर पलती से नागरी का 'ऊ'कप गया है जो प्रखर सके स्थान में पाठक पढ़े. .; जि. , पृ ७५ पास के प्लेट से .. ये मूल पंक्तियां राजगज (दूमरे ) के दानपत्र से है. ..; जि.११ पृ.१२ और १७ के बीच के प्लेटों से ऐं. जि. ५, पृ. १४६ र १७ के बीच फोटो से. ८. जि. ५, पृ २०५ के पास के प्लेट / B, पति ५ से. . जि ३, पृ. ६३ के पास के शंट ३ A, पांक ५०. P..जि -पृ. ३४०के पास की पोट, क्रमशः पहिश और