माधीमलिपिमाला. क्-१. ख२. ग्-३. ५-४. -५. ८-६.-७. ज्-. -६. म्-१.. १२. २-१३. १४. ए-१५. =१६. ५-१७. न्-२०. २१. २२. ब्-२३. भ-२४. म् - २५. य%D३०. र-४०. ब-६०. २-७०. ष=८०. म्-६०. इ-१००. उ-१००००. -१००००००. ए-१००००००००००. ऐ-१००००००००००००. मो-१००००००००००००००. पौ= १००००००००००००००००. इस शैली में स्वरों में स्व दीर्घ का भेद नहीं है. व्यंजन के साथ जहां स्वर मिला हुआ होता है वहां व्यंजनसूचक अंक को स्वरसूचक अंक से गुणना होता है और संयुक्त व्यंजन के साथ जहां स्वर मिला होता है वहां उक्त संयुक्त व्यंजन के प्रत्येक घटक व्यंजन के साथ वही स्वर माना जाता है जिससे प्रत्येक व्यंजन सूचक अंक को उक्त स्वर के सूचक अंक से गुण कर गुणनफल जोड़ना पड़ता है। इस शैली में कभी कभी एक ही संख्या भिन्न अक्षरों से भी प्रकट होती है. ज्योतिष के प्राचार्यों के लिये भार्यभट की यह शैली बहुत ही संक्षिस अर्थात् थोड़े शब्दों में अधिक अंक प्रकट करनेवाली थी परंतु किसी पिछले लेखक ने इसको अपनाया नहीं और न यह शैली प्राचीन शिलालेखों तथा दानपत्रों में मिलती है, जिसका कारण इसके शब्दों का कर्णकटु होना हो अथवा आर्यभट के भूभ्रमणवादी होने से मास्तिक हिंदुनों ने उसका बहिष्कार किया हो. आर्यभट (दूसरे ) ने, जो लल्ल और ब्रह्मगुप्त के पीछे परंतु भास्कराचार्य से पूर्व अर्थात् ई.स. की ११ वीं शताब्दी के आसपास हुआ, अपने 'भार्यसिद्धांत' में १ से 8 तक के अंक और शून्य • के लिये नीचे लिखे अक्षर माने हैं..- - 8 'डि'xt=५४१००=५००. 'बु'=4x3%D२३४१००००%3D२३०००० 'एल'=ण ४ ल%3D१५४ २००००००००=१५०००००००० २. 'रु' (+)3x+x ऋ२४१००००००+cox १००००००%3D२००००००+5००००००० -- ८२००००००. 'क्यु' (खु+यु) स्स् xउ+ x उ%२४१००००+३०४ १०००० % २००००+ ३००००० - ३२००००. 'बम' २४ +म x =५४१+ २५४१%D५+ २५-३०, यही अंक (३०) 'य' से भी सूचित होता है (मी य: प्रा. १). किx-१४१००-१००, यही अंक 'ह' से भी प्रकट होता है. • भार्यभट प्रथम ने 'बगरविभवका स्थव शशि पचविपणन क विशिवालपप्राक' इस माधी भार्या से महायुग में होनेवाले सूर्य ( ४३२००००) और चंद्र ( ५७७५३३३६ ) के भगण तथा भूम्रम ( १५८२२३७५०० ) की संख्या दशगुणोत्तर संख्या के क्रम से बतलाई है जिसका म्यौरा नीचे अनुसार है- 'चयगियित्शुक्ल'. शिशिबुएल. ३२०००० ६ ५०० ४०००००० शि गि = ३०० २३०००० ४३२००००. यि एल = १५०००००००० ५०००० स्थ ८२०००००० ७००००० MUODO000 १५८२२३७५०० 4 ३० Wooo ३००० २७७५३३३६ . पाबम्पर्ग पत्रमारनवम्बका भी समय प्रबमाचाबेरेरे बनीपा(मार्यसिद्धांत, अधिकार पर) - 'छमृ' में 'ख' स्वर नहीं है किंतु t (xxx). 'पर' में स्वर(x),
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