पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१५७

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भारतवर्ष की धर्तमान लिपियां १०० का चिक फिनिशिअन् अंकों के १०० के चित्र के ४ रूपों में से चौथे से मिलता हुमा है, केवल उसके पूर्व एक की खड़ी लकीर अधिक लगी है. ऐमी दशा में इन चित्रों में से ४ के चिक के सिवाय सब का फिनिशिअन् से निकला हुमा होना अनुमान होता है लिपिपत्र ७६ के उत्तगई का द्वितीय खंड इस खंड में ५ बड़ी पंक्तियां हैं जिनमें मे पहिली और चौथी में वर्तमान नागरी अंक है और दूसरी, तीसरी नथा पांचवीं में उन्हीं के मृनक म्वरोष्ठी अंक हैं. दमरी पंक्ति में अशोक के शहवा- जगढ़ी और मान्सेरा के लेग्वों से और नीसरी नथा पांचवीं में शक, पार्थिमन् और कुशनवंशियों के समय के संवत्वाले ग्वरोष्ठी लेग्वों में अंक दिये गये हैं. २१ भारतवर्ष को मुख्य मुख्य वामान लिपियां. लिपिपत्र अमर भारतवर्ष की समस्त वर्तमान प्रार्य लिपियों का मूल ब्रामी लिपि ही है ये भिन्न भिन्न लिपियां किन किन परिवर्तनों के बाद बनी यह लिपिपत्र १ मे ६४ तक में दी हुई भिन्न भिन लिपियों से मालूम हा सकता है उन सय में नागरी सार्वदेशिक है और बहुधा सार भारतवर्ष में उमा प्रचार बना हुआ है इतना ही नहीं किंतु यूरोप, अमेरिका, चीन, जापान आदि में जहां जहां सम्कृत का पठनपाठन होता है वहा के भंस्कृतज्ञ लोगों में भी उसका अादर . हिंदी, मराठी तथा संस्कृत के पुस्तक उमामें छपते: बाकी को लिपियां एकदैशिक है और भारतवर्ष के मित्र भिन्न विभागों में से किसी न किसी में उनका प्रचार है. लिपपत्र ७७ यां इस लिपिपत्र में शारदा ( कश्मीरी ), टाकरी और गुरमुवी ( पंजापी) लिपियां नया उनके अंक दिये गये हैं शारदा लिांप-कश्मीर देश की अधिष्ठात्री देवी शारदा मानी जाती है जिससे वह देश 'शारदादेश' या 'शारदामंडल' कहलाता है और उसीपर से वहां की लिपि को 'शारदा लिपि कहने हैं. पीछे से उसको 'देवादश' भी कहते थे. मूल शारदा लिपि ई स की दमवीं शताब्दी के पास पास 'कुटिल लिपि से निकली और उसका प्रचार करमीर तथा पंजाब में रहा. उसी रि- वर्तन होकर वर्तमान शारदा लिपि बनी जिसका प्रचार अब कश्मीर में बहुत कम रह गया है उसका स्थान बहुधा नागरी, गुरमुग्वी या टकरी ने ले लिया है राकरी लिपि-यह शारदा का घसीट रूप है, क्योंकि इसके इ, ई, उ, ए, ग, घ, च, श्र, द, त, थ, द, ध, प, भ, म, य, र, ल और ह अक्षर वर्तमान शारदा के उक्त अक्षरों से मिलते १. देखो, ऊपर पृ १२८ ..हम लेखों के लिये देखो. ऊपर पृ ३२, टिप्पण..और पृ ३३, टि १,२ .. फो, स्टे, पृ.४३, ४७