प्राचीनलिपिमाला प्रारंभ कृष्ण के स्वर्गारोहण से अर्थात् भारत के युद्ध के पीछे माना है परंतु उसको पिछले विद्वानों ने स्वीकार नहीं किया. वराहमिहिर लिखता है कि युधिष्ठिर के राज्यसमय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर थे और उस राजा का शककाल (संवत् ) २५२६ वर्ष रहा' अर्थात् उसके संवत् के २५२६ वर्ष पीतने पर शक संवत् चला. इससे महाभारत के युद्ध का छापर के अंत में नहीं किंतु कलियुगं संवत् के (३१७६-२५२६% ) ६५३ वर्ष व्यतीत होने पर होना मानना पड़ता है कल्हण पंडित कश्मीर के राजाओं के राज्यसमय के विषय में लिखते हुए कहता है कि 'बापर के अंत में भारत युद्ध ] हुमा इस दंतकथा से विमोहित हो कर कितने एक [विद्वानों ने इन राजाभों का राज्य काल रालत मान लिया है.......जब कलि के ६५३ वर्ष व्यतीत हुए तब कुरूपांडव हुए' अर्थात् भारत का युद्ध हुआ. यह कथन वराहमिहिर के उपर्युक्त कथन के अनुसार ही है. पुराणों में परीक्षित के जन्म ( महाभारत के युद्ध ) से लगा कर महापद्म (नंद ) के राज्या- भिषेक तक १०५०' वर्ष होना भी लिखा मिलता है. महापा (नंद) के वंश का राज्य १०० वर्ष तक रहा जिसके पीछे मौर्य चंद्रगुप्त ने राज्य पाया. चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक ई. स. पूर्व ३२१ के आसपास होना निश्चित है अतएव पुराणों के उपर्युक्त कथनानुसार भारत युद्ध का ई. स. पूर्व (३२१+१००+१०५०= ) १४७१ के पास पास होना मानना पड़ता है. पुराणों में दी हुई भारत के युद्ध से लगा कर महापद्म (नंद )नक की वंशावलियों में मिलनेवाली राजानों की संख्या देखते हुए भी यह समय ठीक प्रतीत होता है. ( D । यंदेव भगवद्विष्णोरशा यातो दिव द्विज । वमुदेवकुलोद्तस्तदेव कलिगगत (विष्णु पुगण, अंश ४, अध्याय २४, श्लोक ५५) विष्णुभंगवतो भानु कृष्णाग्योऽसा दिव गतः । तदा विशन्कलि.क पोप यद्रमत अनः ( भागवत, स्कंध १२. अध्याय २, श्लोक .. ) महाभारत में पाया जाता है कि पांडवों ने विजयी होने के बाद १५ वर्ष तक तो गजा ( धृतराए) की भाशा के अनुसार सब कार्य किया फिर भीम के वाग्बाण से खिन्न हो कर गजा विरक हुआ तश्च युधिष्ठिर स्वतंत्र राजा बना. फिर ३६ वर्ष कृष्ण और यादवों के स्वर्गवास की खबर आई तब पक्षित को गज्यसिंहासन पर बिठला कर पांडवों ने द्रौपदी महित महाप्रस्थान किया' (ई, जि ४०, पृ. १६३-६४) इस हिसाब से तो कृष्ण का स्वर्गारोहण, पांडवों का महाप्रस्थान, पवं पुगणों का कलियुग का प्रारंभ भारतयुद्ध से ( १५+३६% ) ५१ वर्ष बाद होना चाहिये. अामन्मघामु मुनयः गासात पृथ्वी युधिष्टिर नृपता । पद्विकपञ्चद्वियुत शककालम्तस्य राज्यम्य ( वाराही संहिता, मान- पिचार, श्लोक). .. भारत द्वापगन्तेऽभृद्वातनि विमोहिताः । केचिदेना मृपा ना कालमख्या प्रक्रिरे ।। ४६ ॥... शतेषु पटसु मार्डेषु त्यधि- केषु च भूतले । कलेगतेषु वपागणामभवन्कुरुपात्रा ॥ ५१ ॥ (गजतरंगिणी, तरंग १). ४ भारत का युद्ध हुश्रा उस समय परीक्षित गर्भ में था इसलिये उसका जन्म भारत के युद्ध की ममानि मे कुछ ही महीनों बाद हुआ होगा. ५ महापाभिषेकात्तु यावज्जन्म परीक्षित । एव वर्षमान तु जय पचाशदुत्तर (मत्स्यपुराण, अध्याय २७३, श्लोक ३६ घायु पुराण, अ , श्लो. ४१५ ब्रह्मांडपुराण, मध्यम भाग, उपोद्धात पाद ३. अ ७४. श्लो २२७). यावत्पीक्षितो जन्म यावन्नंदाभिषे- चनम् । एतद्वर्षसहस्र तु ज्ञेयं पचदशोत्तर (विष्णुपुराण, अंश ४ अ. २४, श्लो ३२ आरभ्य भवनो जन्म यावन्नंदाभिषेचनम् । एतवर्ष- सहस्रं तु शत पचदशोत्तरम् (भागवत, कंध १२, अ.२, श्लो २६ ) इस प्रकार परीक्षित के जन्म से लगा कर महापा (नंद) के राज्याभिषेक तक के वर्षों की संख्या मन्स्य, वायु और ब्रह्मांडपुराण में १०५०, विष्णु में १.१५और भागवत मै १९१५ वी है. अधिकतर पुराणों में १०५० ही है जिसको हमने स्वीकार किया है. 4. चंद्रवंशी अजमीढ के पुत्र ऋत का वंशज और जरासंध का पुत्र सहदेष भारत के युद्ध में मारा गया. फिर उसका पुष ( या उत्तराधिकारी ) सोमाधि (सोमापि ) गिरिखज का राजा हुआ जिसके पीछे २१ और राजा हुए. ये २२* राजा वृहद्रयवंशी कहलाये. इस वंश के अंतिम राजा रिपुंजय को मार कर उसके मंत्री शुनक ( पुलिक ) ने अपने पुत्र प्रयोत को राजा बनाया. प्रद्योत के वंश में ५ राजा हुए जिनके पीछे शिशुनाग वंश के १० गजा हुए. जिनमें से १०३ राजा महनंदी का 'ब्रह्मांडपुराण में वृहद्रयवंशी राजाओं की संख्या २२ और मत्स्य तथा वायु में ३५ दी है. विष्णु और भागवत में संख्या नहीं दी. किसी पुराण में २२ मे अधिक राजाओं की नामावली नहीं मिलती इसीसे हमने वृहद्रयवंशी राजानी की संख्या २-मानी है
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