पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१९१

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भारतीय संवत् भारत युद्ध के समयसंबंधी ऊपर उद्धृत किये हुए भिन्न भिन्न मतों पर से यही कहा जा सकता है कि पहिले के कितने एक लेखकों ने कलियुग मंवत् और भारतयुद्ध संवत् को एक माना है परंतु भारत का युद्ध कलियुग के प्रारंभ में नहीं हुआ. ३-चीरनिर्वाण संवन. जैनों के अंतिम तीर्थकर महावीर (वीर, वर्द्धमान) के निर्वाण ( मोक्ष ) से जो संवत् माना जाता है उसको 'वीरनिर्वाण संवत्' कहते हैं. उसका प्रचार बहुधा जैन ग्रंथों में मिलता है तो भी कभी कभी उसमें दिये हुए वर्ष शिलालेखों में भी मिल पाते हैं. (भ) श्वेतांबर मेरुतुंगसूरि ने अपने विचारश्रेणि' नामक पुस्तक में वीरनिर्वाण संवत् और विक्रम संवत् के बीच का अंतर ४७० दिया है। इस हिसाब से विक्रम संवत् में ४७०, शक संवत् में ६०५ और ई. स में ५२७ मिलाने से वीरनिर्वाण मंवत् भाता है. (मा) श्वेतांबर अंबदेव उपाध्याय के शिष्य नेमिचंद्राचार्य रचित 'महावीरचरियं' नामक प्राकृत काव्य में लिखा है कि 'मेरे ( महावीर के ) निर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बीतने पर शक राजा उत्पन्न होगा. इससे भी वीरनिर्वाण संवत और शक संवत् के बीच ठीक वही अंतर पाता है जो ऊपर लिया गया है. (इ) दिगंबर संप्रदाय के नेमिचंद्र रचित 'त्रिलोकसार' नामक पुस्तक में भी वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बाद शक राजा का होना लिखा है. इससे पाया जाता है कि दिगंबर संप्रदाय के जैनों में भी पहिले वीरनिर्वाण और शक संवत् के बीच ६०५ वर्ष का अंतर होना स्वीकार किया जाना था जैसा कि श्वेतांबर संप्रदायवालं मानते हैं, परंतु 'त्रिलोकसार के टीकाकार माधव- चंद्र ने त्रिलोकसार में लिम्बे हुए 'शक' राजा को भूल से 'विक्रम 'मान लिया जिससे कितने एक पिछले दियंगर जैन लेग्वकों ने विक्रम संवत् से ६०५ : (शक संवत् से ७४०) वर्ष पूर्व वीरनिर्वाण होना मान लिया जो ठीक नहीं है. दिगंबर जैन लग्वको ने कहीं शक संवत् से ४६१, कहीं ९७६५ और कहीं १४७६ : ' वर्ष पूर्व धीरनिर्वाण होना भी लिखा है परंतु ये मत स्वीकार योग्य नहीं हैं. . . . पुत्र महापन ( नंद) था म गणना के अनुसार महाभारत के युद्ध से लगा कर महापन की गद्दीनशीनी तक ३७ गजा होते हैं जिनके लिये १०५० वर्ष का समय कम नहीं किनु अधिक ही है क्योंकि श्रासन हिसाब से प्रत्यक राजा का राजस्व काल २८ वर्ष से कुछ अधिक ही आता है ' विक्कमरज्जारभा परउ सिरिवीगनब्बुइ भगिया । मुन्न मुगिअजुनो विक्कमकाल र जिगाकाली ॥ विक्रमकाला िजनम्य बारस्य कालो जिनकालः शून्यमुर्निवदयुक्तः चत्वारिशनानि ममत्यधिकवपाणि श्रीमहावीर्गवक्रमादित्ययारतरमित्यर्थः ( विचारश्रेणि ) यह पुस्तक ई. स. १३१०के आस पास बना था छहिं वामागामर्णः पचहि बामहि पचमामहि । मम निव्वगागयम्म ३ उप्पाजस्मइ मगा गया || ( महावीरचारयं) यह पुस्तक वि सं. ११४१ ( स १०८४ ) में बना था पगाछम्मयवम्म पगामास नुद गमिश्र वीरनिव्युइटो मगराजो० ( त्रिलोकमार, श्लो ८४८) यह पुस्तक वि सं की ११ धी शताब्दी में बना था हरिवंशपुगण में भी वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष बीतने पर शक राजा का होना लिखा है और मेघनंदि के श्रावकाचार में भी ऐसा ही लिखा है ( .जि १२ २२). . श्रीवीरनाथनिवृत्तेः सकाशात पश्चोत्तरपट्छतवर्षाणि पश्चमामयुतानि गवा पश्चात विक्रमाङ्कशकगजोगायत (त्रिलोकमार र्युक्त लोक की टीका). .. दिगंबर जैनों के प्रसिद्ध तीर्थस्थान श्रवणबेल्गोला के एक लेख में वर्धमान( वीर )निर्वाण संवत् २४६३ में विक्रम संवन् १८८८ और शक संवत् १७५२ होना लिखा है जिसमें धीरनिर्वाण संवत् और विक्रम संवत् का अंतर ६०५ पाता है (ई. हैं, जि. २५, पृ. ३४६ ). इस मशुद्धि का कारण माधवचंद्र की अशुद्ध गणना का अनुसरण करना ही हो. '. वीरनिगां सिद्धिगदे चउसदइगिसहिवासपरिमाणो । कालमि अदिक्कने उप्पगो पत्य सगरायो ।। अहया वारे सिद्धे सहस्समावमि सग(त)सपाहिये । पगासीदिमि यतीदे पगामामे सगशिश्रो आदा (पाठान्तर)॥ चोदसमहम्ससग(त)सयनेगाउदीवासकालविच्छेदे । वीरेसर- उप-