१६५ भारतीय संवत् इस संवत् का उल्लेख नहीं मिलता. नंद वंश को नष्ट कर राजा चंद्रगुप्त ने ई. स. पूर्व ३२१ के आस पास मौर्य राज्य की स्थापना की थी अत एव अनुमान होता है कि यह संवत् उसी घटना से चला हो. यदि यह अनुमान ठीक हो तो इस संवत् का प्रारंभ ई. म. पूर्व ३२१ के आस पास होना चाहिये ६-मल्युकिडि संवत ई. स. पूर्व ३२ में यूनान के बादशाह सिकंदर ( अलेकजेंडर ) का देहांत होने पर उसके सेनापति राज्य के लिये आपस में लड़ते रहे. अंत में तीन राज्य मदनिश्रा ( मसिडोनिश्रा, ग्रीस में ), मिमर और सीरिया ( पायीलन् ) कायम हुए. सीरिमा का स्वामी सल्युकम निकाटॉर पना जिसके अधीन याकट्रिश्रा आदि एशिया के पूर्वी दंश भी रहे सेल्युकम के राज्य पाने के ममय अर्थात् ना १ अक्टोबर ई. स. पूर्व ३१२ मे उमका मंवत् (सन्) चला जो बाकट्रिया में भी प्रचलिन हुभा. हिंदुस्तान के काबुल तथा पंजाय श्रादि हिस्मों पर बाकट्रिया के ग्रीकों (यूना- नियों ) का आधिपता होने के बाद उक्त संवत का प्रचार भारतवर्ष के उन हिस्सों में कुछ कुछ हुआ हो यह मंभव है. यद्यपि अय तक कोई ऐमा लेग्न नहीं मिला कि जिसमे इस संवत का लिखा जाना निश्चयात्मक माना जा मकं नां भी इस मंवत् के साथ लिम्व जानेवाले मसीडोनि- अन् ( यूनानी ) महीने शक तथा कुशन वंशियों के समय के कितने एक म्वरोष्ठी लेग्वां में मिल पाते हैं. जिन लग्वा में यं विदेशी महीने मिले हैं वे विदशियां के खुदवाये हुए हैं. उनमें दिये हए वर्ष किस मंवत के हैं इसका अब तक ठीक निर्णय नहीं हुआ तो भी मंभव है कि जो लोग विदेशी मसीडोनिअन् (यूनानी ) महीने लिम्बने थे ये संवत भी विदेशी ही लिग्वते होंगे चाहे वह मेल्यु- किटि ( शताब्दियों के अंकरहित ), पार्थिअन् ' या कोई अन्य ( शक ) संवत हो ७ -विक्रम सवत् विक्रम संवत की मालव संवत (मालव काल' ) भी कहते है इमक मंबंध में यह प्रसिद्धि चली आती है कि मालवा के राजा विक्रम या विक्रमादित्य ने शकों का पराजय कर अपने नाम का संवत् चलाया. धौलपुर से मिला हुए चाहमान ( चौहान ) चंदमहाग के विक्रम संवत ८९(ई स ८४५) लोरिश्रन नंगाई। स्वान जिले में । स मिली हु बुद्ध की प्रति प्रामन पर खुद हुए सं १८ के खगली लख (म ३१८ पाठपदम दि. श्रा मर.. म १६०३४ पृ २५६ । तथा जश्ननगर । पृष्फलावनी । म मिली हुई युद्ध की (अपने शिष्या मरिन । मृति के प्रासन पर ग्बुद में ३-४ (म ३८, प्राठदस ममम दिवसांम पचांम ५~ ई. जि १२ पृ १... के लेग्ब में दिया मासयत कानमा है यह निश्चित है मंभव है कि उनका संवन मार्य संथन हा मसीडोनियन महीनों क नाम क्रमशः हाइपरवटिअस । Hyn the cell us i. डिश्रम -) ऍपेल्लिअस MINI ऑचिनिश्रम। Lilian ). परिटिस - ). हिस्टस । 1111. जैथिकस | Lth us), आमिमिश्रम । 11.111101 डेसिश्रम । Dict-1 पनमस (Pun | लोअस । Lila | और गॉर्पिपअस इनमें से परिला कापरयटिस अंग्रजी ओक्टोबर के और अंतिम गोपिएस मेप्टेंबर के स्थानापन्न अब तक इन मसीडानिधन महीनों में से ४ महीने पेंगल्लिअस । कर.ई पृ.), श्रामिमित्रस । विष्क के समय के म ५१ के चंडक मे मिले हुए पात्र पर के लेख में .. जि.पृ २१० । डमिनस ( दहसिक कनिष्क के समय के म ११ के सुपविहार क ताम्रलेख में पजि १० ३२६, जि . पृ १२८ । और पनेमस । तत्र पनिक के तक्षशिला से मिले हुए सं ७८ के नाम्रलेख में , जि ४ पृ ५५ :-लेखों में मिल . पार्थिन संवत् का प्रारंभई स पूर्व २४७ के मध्य के आस पास होना माना जाता है ( क.ईई पृ ४६ ) मालकालापहरदा पविगत्सयतेष्वतीतषु नवम् शतेषु । ग्यारिसपुर का लेख क ा स रि: जि १०, प्लेट १९) V
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