१६४ प्राचीनलिपिमाला. ४-बुद्धनिर्धाण संवत्. बौद्धों में बुद्ध (शाक्यमुनि) के निर्वाण से जो संवत् माना जाता है उसको 'बुद्धनिर्वाण संवत्' कहते हैं. यह बौद्ध ग्रंथों में लिखा मिलता है और कभी कभी शिलालेखों में भी. बुद्ध का निर्वाण किस वर्ष में हुआ इसका यथार्थ निर्णय अब तक नहीं हुभा. सीलोन' (सिंहलदीप, लंका), ब्रह्मा और स्याम में बुद्ध का निर्वाण ई.स.से ५४४ वर्ष पूर्व होना माना जाता है और ऐसा ही भासाम के राजगुरु मानते हैं. चीनवाले ई. स. पूर्व ६३८ में उसका होना मानते हैं.' चीनी यात्री फाहिमान ने, जो ई. स. ४०० में यहां पाया था, लिखा है कि इस समय तक निर्वाण से १४६७ वर्ष व्यतीत हुए हैं. इससे बुद्ध के निर्वाण का समय ई. स. पूर्व (१४६७-४०० ) १०६७ के पास पास मानना पड़ता है. चीनी यात्री हुएन्संग ने निर्वाण से १०० वें वर्ष में राजा अशोक (ई.स. पूर्व २६६ से २२७ तक ) का राज्य दूर दूर फैलना बतलाया है। जिससे निर्वाणकाल ई. स. पूर्व की चौथी शताब्दी के बीच आता है. डॉ. बूलर ने ई. स. पूर्व ४८३.२ और ४७२-१ के बीच ', प्रोफेसर कर्न' ने ई.स. पूर्व ८८ में, फर्गसन ने ४८१ में, जनरल कनिंगहाम् ने ४७८ में, मॅक्समूलर ने ४७७ में, पंडित भगवानलाल इंद्रजी ने ६३८ में (गया के लेख के आधार पर), मिम् डफ्ने " ४७७ में, डॉ. बानेंट ने " ४८३ में, डॉ. फ्लीट ने ४८२ में और वी. ए. स्मिथ ने ई. स. पूर्व ४८७ या ४८६ में निर्वाण होना अनुमान किया है. वुद्धनिर्वाण संवत्वाले अधिक लेख न मिलने तथा विद्वानों में इसके प्रारंभ के विषय में मतभेद होने पर भी अभी तो इसका प्रारंभ ई. स. पूर्व ४८७ के पास पास होना स्वीकार करना ठीक जचता है, परंतु वही निश्चित है ऐसा नहीं कहा जा सकता. ५--मौर्य संवत् उदयगिरि ( उडीस में कटक के निकट) की हाथी गुंफा में जैन राजा ग्वारवेल (महामेघवाहन) का एक लेम्व है जो मार्य संवत (मुरियकाल ) १६५ का है". उक्त लेख को छोड़ कर और कहीं 1 . हिन्दी उप्परगा राणा श्री अन्या (पाटान्तर । ॥ (त्रिलोकप्रक्षति--देखो, 'जनहितची मासिक पत्र', भाग १३. अंक १२ दिसंबर १६१७,५३०) । भगवति पनिवृत सम्बत् १८१२ कार्तिकवाद । बुधे ( गया का लेख , जि १० १ ३४३ ) २, कॉर्पस इन्स्क्रिपशनम् इंडिकरम ( जनरल निगहाम संपादित । जि. १. भूमिका. ३. • प्रि पं जि२, यूसपुल टेबल्स. पृ १६५ ४. बी बुरे वेव. जि. १ की भूमिका, पृ ५ बी. धुरं वे व.जि १, पृ १५० ७ एंजि ६.पृ१५४ • साइक्लोपीरिया ऑफ इंडिया.जि.१ पृ ४६२ ८. कॉर्पस इस्क्रिपशनम इंडिकेरम जि १ की भूमिका पृ.। में हि ए सं लि. पृ २९% हए. जि १०. पृ. ३४६ ११. उ, को, पृ६ १९. बा, ' ई पृ ३७ ० ज रॉ ए. सोई स १९०६. पृ. ६६७ ...मि अहि, पृ ४७ (तीसग संस्करण) 1५ पनतरियसटिवससने रामगुरियकाले वोठिन च चोयटअगसतिकुतरिय ( पंडित भगवानलाल इंद्रजी संपादित 'दी हाथी गुफा ण्ड श्री अदर इरिक्रपशन्स ). डॉक्टर स्टेन कॉनी ने ईस.१९०५-६ की पार्किालाजिकल सर्वे की रिपोर्ट में लिखा है कि इस वर्ष कलिग के राजा खारवल के प्रसिद्ध हाथी गुफा के लेख की नकल । प्रतिकृति ) नय्यार की गई... यह लेख मौर्य संवत् १६५ का है' (पृ १६६ ). उक्त पुस्तक की समालोचना करते हुए डॉक्टर फ्लीट मे उक्त लेख के संवत् संयधी कंश के विषय में लिखा कि उक्त लेख में कोई संबत नहीं है कि वह यह बतलाता है कि खारवेल ने कुछ मूल पुस्तक और ६४ अध्याय प्रथया { जनों के सात अंगों के किसी अन्य विभाग का पुनरुद्धार किया, जो मौर्य काल से उच्छिन्न हो रहा था (ज रों प. सो. इ. स. १९१०. पृ. २४३-४४) डॉ. फ्लीट के इस कथनानुसार प्रा लसर (पं. जि. १० ब्राह्मी लखों की सूची. पृ १६१ ) और वी ए स्मिथ ने (स्मि; अहि... पृ. २०७. टि. २) उक्त लेख में कोई संपत्न होना मान लिया है, परंतु थोड़े ही समय पूर्व पश्चिमी भारत के प्राकिंभालोजिकल विभाग के विद्वान सुपरिटेंडेट राखाल- दास पनजी ने उक्त लेम्स को फिर प्रसिद्ध करने के लिये उसकी प्रतिकृति तय्यार कर पढ़ा है उनके कथन से पाया गया कि उसमें मार्य संवत् १६५ होना निर्षियाद है ऐसी दशा में डा. पलीट श्रादि का कथन ठीक नहीं कहा जा सकता
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