१७० प्राचीनलिपिमाला. 'भाषाढादि' संवत्' कहते थे राजपुताने के उदयपुर आदि राज्यों में राजकीय विक्रम संवत् अव श्रावण कृष्णा (पूर्णिमांत) से प्रारंभ होता है. ८. शक संवत् शक संवत् के प्रारंभ के विषय में ऐसी प्रसिद्धि है कि दक्षिण के प्रतिष्ठानपुर (पैठण ) के राजा शालिवाहन (सातवाहन, हाल ) ने यह संवत् चलाया. कोई इसका प्रारंभ शालिवाहन के जन्म से मानते हैं. जिनप्रभसूरि अपने 'कल्पप्रदीप' नामक पुस्तक में लिखता है कि प्रतिष्ठानपुर (पैठण) में रहनेवाले एक विदेशी ब्राह्मण की विधवा बहिन से सातवाहन (शालिवाहन ) नामक पुत्र उत्पन्न हुमा. उसने उज्जैन के राजा विक्रम को परास्त किया. जिसके पीछे उमने प्रतिष्ठानपुर का राजा बन कर तापी नदी तक का देश अपने अधीन किया और वहां पर अपना संवत् प्रचलित किया'. क्रम से अनन्ट विक्रम साक अथवा धिक्रम अनंद साफ करके उसका अर्थ क। कि नव-रहित विक्रम का शक अथवा विक्रम का नव-रहिन शक अर्थात् १००-680 1१ अर्थान विक्रम का यह शक कि जो उसके राज्य के वर्ष १० । ६१ से प्रारंभ हुमा है। यहीं थोड़ी सी और उत्पेक्षा ( ? करके यह भी समझ लीजिये कि हमारे देश के ज्योतिषी लोग जो संकड़ों वर्षों से यह कहते चले जाते है और आज भी वृद्ध लोग कहते है कि विक्रम के दो संवत् थे कि जिनमें से एक ना अयनक प्रचलित है और दूसरा कुछ समय तक प्रचलित रह अय अप्रचलित हो गया है अतपय विदित हो कि विक्रम के दो संयत् है। एक तो सनन्द जो आज कल प्रचलित है और दूसरा अनन्द जो इस महाकाव्य में प्रयोग में आया है। पृथ्वीराजरासा प्रावि पर्व, पृ १३६) पं. मोहनलाल पंड्या का यह साग कथन सर्वथा स्वीकार योग्य नहीं है क्योंकि रास के अनंद' शब्द का अर्थ 'आनंददायक' या 'शुभ ही है जैसा कि भाषा के अन्य काव्यों में मिलता है. उसको वास्तविक मर्थ में न ले कर विक्रम के गज्य के ६० या वे वर्ष से चलनवाला अनंद विक्रम संवम्' अर्थ निकालना हठधर्मी सम्बाली नहीं है. ज्योतिषियों ने विक्रम के दो संवतो का होना कभी नहीं माना और न किमी वृद्ध पुरुष को ऐसा कहते हुए सुना पं. मोहनलाल की यह कल्पना भी ठीक बसी ही है जो कि गजप्रशस्ति में बुदे हुए भाषारासापुस्तकस्य 'के 'भाष. मगर प्राचीनशोधसंग्रह' में छपे हुए अशुद्ध पाठ • भापारासापुस्तकम्य' पर से भीखारासा नामक ऐतिहासिक पुस्तक की सृष्टि खड़ी कर दी गई पं मोहनलाल पंड्या के इस मनघडत कथन के आधार पर डॉ. प्रीअर्सन । म्मि अहि पृ ४२, टिप्पा २ ), बी. ए म्मिथ । स्मि , अदिइ, पृ ३७ टिप्पण २१ और डॉ बानेट ने ( घा, पं.१ ६५ ) अमंद विक्रम संवत्'का स ३३ स चलना माना है परंतु हम उम स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि गजपुताने में विक्रम के दो संघतो का होना कभी माना नहीं गया, न वहां से मिल हुए शिलालखा दानपत्रों. हम्तलिखित पुस्तकी. भाटों नथा चारणों के लिखे हुए भाषा कविता के ग्रंथों या ग्यानों में कही भी अनंद विक्रम संबन का उल्लम्ब मिलता है न पृथ्वीराजरास के उपर्युक्त दोहे में 'अनंद विक्रम संवत् की कल्पना पाई जाती है और न 'पृथ्वीगजविजय महाकाव्य से, जो चाहानों के इतिहास का प्राचीन और प्रामाणिक पुस्तक है. वि सं १२२० । ई. स ११६३ ) के पूर्व पृथ्वीराज का जन्म होना माना जा सकता है . आषाढादि विक्रम संवत शिलालेखों तथा पुस्तका में मिलना है अड़ालिज ( अहमदाबाद से १२ मील पर) की बायड़ी के लेख में 'श्रीमन्नृपविक्रमसमयानीना(त)श्रापाढादिसवन १५५५ वर्षे शाके १४२०. माघमामे पचम्या नियो बुधवासरे' ( ए. जि. १८. पृ २५१ ). डुंगरपुर राज्य के सां गांव के पास के शिवमंदिर के लेख में-'श्रामनृ(न्न) पविक्रमाक(क)राज्यसम- यातीतसंवत् १६ अाषाढादि २३ वर्षे शाके १४८८ प्रवर्तमाने । युवाख्यनाम्नि नवत्मरे , वैशाग्यमास । कृष्णापक्ष । प्रनिपनि(ति)या । गुरुवासरे.' डुंगरपुर राज्य से मिल हुए कर्ज शिलालेखों में 'भाषाढादि' संवन् लिखा मिलता है. प्रभासक्षेत्रतीर्थयात्राक्रम नामक पुस्तक के अंत में-'मवत् १५ श्रापाढादि ३४ वरपे (वर्ष ) श्रावणशुदि ५ यू(भी)मे '-लिखा मिला है ( : जि १८, पृ २५१ ) त्र्यंकेन्द्र(१४६३)प्रमिते वर्षे शालिवाहनजन्मतः । कृतस्तपमि मार्नडोऽयमल जयतृद्गतः (मुहर्तमानेड, अलंकार श्लोक ३) यह पुस्तकई स १७०० के पास पास बना था ज ए मो बंब. जि १०, पृ. १३२.३३ ' गगन पाणि पुनि द्वीप ससि ( १७२० ) हिम कल मंगसर मास । शुक्ल पक्ष नरस दिने बुध वासर दिन जाम ।। २६६॥ मग्दानी भक महा बली अवरंग शाह नारद । नासु गज महिं हरख रच्यो शाम अनंद ॥ २७ ॥ ( पचराग के शिष्य रामचंद्र रचित 'रामविनोद' नामक पुस्तक)
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