भारतीय संवत् विजय कर दोनों मल्लों (जयदेवमल्ल और भानंदमल्ल ) को तिरहुत की तरफ निकाल दिया'. इस कथन के अनुसार शक संवत् और नेवार संवत् के बीच का अंतर (८११-६= ) ८०२ और विक्रम संवत् तथा नेवार संवत् के बीच का अंतर (६४६-६)६३७ आता है नेपाल से मिले हुए दामोदर भट्ट रचित 'नवरत्नम्' नामक पुस्तक के अंत में शक संवत् १६०७ मार्गशिर वदि अष्टमी, मघा नक्षत्र, सोमवार और नेपाल संवत् ८०६ लिखा है. इसके अनुसार शक संवत् और नेपाल संवत् के बीच का अंतर (१६०७-८०६) ८०१ पाता है. डॉ. कीलहॉर्न ने नेपाल के शिलालेखों और पुस्तकों में इस संवन् के साथ दिये हुए माम, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र भादि को गणित मे जांच कर ई स ८७६ तारीख २० अक्टोबर अर्थात् चैत्रादि वि.सं ९३६ कार्तिक शुक्ला ? से इस संवत् का प्रारंभ होना निश्चय किया है. इसमे गत नेपाल संवत् में ८७८-७९ जोड़ने से ई. म, और ६३५-३६ जोड़ने मे वि सं होता है. इसके महीने अमांत हैं और वर्ष बहुधा गत लिग्वे मिलते हैं यह संवत् नेपाल में प्रचलित था परंतु जय से नेपाल पर गोग्चों का राज्य हुआ (ई स. १७०८ ) तब मे राजकीय लिखापढ़ी में इस संवत् के स्थान पर शक संवत् प्रचलित हो गया है परंतु पुस्तकलेखक आदि अब तक इसको काम में लाने हैं . . १६ --चालुक्य विक्रम संवत कल्याणपुर (कल्याणी. निज़ाम गज्य में ) के चालुक्य (सोलंकी) राजा विक्रमादित्य (छठे) ने अपने राज्य में शक संवत् को मिटा कर उसके स्थान में अपने नाम का संवत् चलाया. मालच के प्रसिद्ध विक्रमादित्य के संवत् मे भिन्न बतलाने के लिये शिलालेग्वादि में इसका नाम 'चालुक्य विक्रमकाल' 'चालुक्य विक्रमवर्ष मिलता है. कभी इसके लिये 'वीरवि- क्रमकाल, 'विक्रमकाल और 'विक्रमवर्ष' भी लिम्वा मिलता है. यह संवन् उक्त राजा के राज्याभिषेक के वर्ष में चला हुमा माना जाता है. चालुक्य राजा विक्रमादित्य (छठे ) के समय के येवूर गांव मे मिले हुए शिलालेग्व में चालुक्य विक्रमवर्ष दुमरा, पिंगल मंवत्सर, श्रावण शुक्ला १५ रवि वार चंद्रग्रहण लिम्वा है' याई- स्पत्यमान का पिंगल संवत्सर दक्षिणी गणना के अनुसार शक संवत् ६६E था अत एव गत शक संवत् और वर्तमान चालुक्य विक्रम संवत् के बीच का अंतर (REE-२= ) ६६७, गत विक्रम संवत् और संभव प्रतीत होता है गधदेव ठाकुरी वंश ( प्रथम ) के राजा जयदेव का पूर्वज होना चाहिये डॉ. भगवानलाल इंद्रजी को मिली हुई वंशावली में जयदेवमल का इ स ८८० में विद्यमान होना लिखा है परंतु उसका ठीक ममय ईस १२५० और १२६० के बीच होना चाहिये पं. जि २३ पृ ४४ नेपाल में पहिल गुप्त मंवम् और उसके पीछे हर्ष संवत् चलता था. जिसके बाद मेवार ( नेपाल ) संवत् चला कशे (शके ) १६७७ मार्गाशग्वदि अष्टमी मघानक्षत्रे सार्मादने. .. नेपाल सवत् ८०६ (ह: कॅ पा पृ. १६५) ९.जि १७.२४६ श्रीमच्चालुक्यविक्रमकालद १२नेय प्रभवसवत्मग्द. ( ज प सा यंप जि १०, पृ. २६०) इस शिलालेख की भाषा 3 . श्रीमञ्चालुक्यविक्रमवर्षद स्नेय पिंगलसवत्सरद० ( ए, जि.८, पृ २०) श्रीवीरविक्रमकाळ(ल)नामधेयसंवत्सरेकविंशतिप्रमितेष्वतीतषु वर्तमानधातुसवत्सरे (ज ए सो बंध. जि १० पृ १९७) श्रीविक्रु(क)मकालसंवत्सरेषु पट्सु अतीतेषु सप्तमे दुइभिसवत्सरे प्रवत्तेमाने (ऐं , जि ३. पृ ३०८ ) - गिरिभवलोचन३७प्रमितविक्रमवर्षमनन्दनायवत्सर० ( की लिस.. ३८. लेखसंख्या २१२) ... जि.पू. २० (देखो इसी पृष्ठ का टिप्पण५). .
पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२०९
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