पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२२२

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२६२ प्राचीनलिपिमाला २८-फसली सन् हिंदुस्तान में मुसलमानों का राज्य होने पर हिजरी सन उनका राजकीय सन हुआ परंतु उसका वर्ष हद्ध भद्र होने के कारण सौर वर्ष से वह करीघ ११ दिन छोटा होता है इससे महीनों एवं फसलों का परस्पर कुछ भी संबंध नहीरता दोनों फरला (रबी और खरीफ) का हासिल नियत महीनों में लेने में सुभीता देख कर बादशाह अवयर ने हिजरी सन १७१ (ई. स १५६३=वि. सं. १६२०) से यह सन जारी किया. सीसे इसको फसली सन कहते हैं. सन् तो हिजरी (६७१) ही रक्खा गया परंतु महीने सौर (या चांदसौर ) मान गये जिससे इसका वर्ष सौर ( या चांदसौर ) वर्ष के बराबर हो गया अत एव फ.सही मन भी शाहर सन् की नाई हिजरी सन का प्रकारांतर मात्र है. पहिले इस सन का प्रचार पंजाय और संयुक्त प्रदेश में हश्रा और पीछे से जप षंगाल भादि देश अक्षर के राज्य में मिले तब से वहां भी इसका प्रचार हुआ. दक्षिण में इसका प्रचार शाहजहां बादशाह के समय अप तक यह मन कुछ कुछ प्रचलित है परंतु भिन्न भिन्न हिस्सों में इसकी गणना में अंतर है. पंजाय, मयुक्त प्रदेश तथा बंगाल में इसका प्रारंभ आश्विन कृष्णा १ ( पूर्णिमांत ) मे मामा जाता है जिससे इसमें ५६२-६३ मिलाने से ई. म. और ६४६-५० मिलाने से विक्रम संवत बनता है. दक्षिण में इसका प्रचार यादशाह शाहजहां के समय हिजरी सन् १०४६ (ई स. १६३६=वि. सं. १६) में हुआ और वहां का प्रारंभ उसी सन से गिना गया जिसमे उत्सरी और दक्षिणी पसी सनों के बीच करीब सवा दो वर्ष का अंतर पड़ गया. यंबई इहाने में इसका प्रारंभ शाहर सन की नाई मर्य के मृगशिर नक्षत्र पर श्रान के दिन मे ( तारीव ५, ६ या ७ जन मे ) माना जाता है और मनी के नाम सहर्रम आदि ।। हैं द्राम इहाते में हम सन का प्रारंभ पहिलं तो छाडि (वर्ष ) मंक्रांति से ही होता रहा परंतु ई म १८०० के आमपास से तारीग्ब १३ जुलाई से माना जाने लगा और ई. म १८५५ में ताव : जुलाई से प्रारंभ स्थिर किया गया है. दक्षिण के सही मन में ५६०-६१ जोड़ने में ई. स और ६४७-४८ जोड़ने से वि मं. यनना है में हुधा. २६-विलायती सन विलायन एक वार में पाक फसली मन का ही दमरा नाम है. इसका प्रचार उड़ीसं ती बंगाल के कुछ हिस्सों में है इसके मास और वर्ष मौर हैं और महीनों के नाम क्षेत्रादि नामों से है इसका प्रारंभ गौर किन अर्थात न्या सक्रांति मे होता है और जिस दिन संक्रांति का प्रवेश होता है उसीको मास का पहिला दिन मानते हैं. इस सन में VER-63 जोड़ने में है. स. और ६४९-५० जोड़ने में वि. सं बनता है. ३०-अमली सन अमली सन विलायती सन के समान ही है, इसमें और विलायती सन में अंतर केवल इतना ही है कि इसके नये वर्ष का प्रारंभ भाद्रपद शुक्ला १२ से और उसका कन्या संक्रांति से होता है. इस संवत का पक्ष के बीच में ही प्रारंभ होने का कारण ऐमा बतलाया जाता है कि उक्त तिथि को उड़ीसे के राजा इंद्रद्युम्न का जन्म हुआ था. स सन का प्रचार खड़ासे के व्यापारियों में तथा वहां की कचहरियों में है. ३१-बंगाली सन. बंगाली मन को 'बंगाब्द' भी कहते हैं. यह भी एक प्रकार से बंगाल के फसली सन् का रांतर मात्र है. पंगाली सन् और फसली सन में अंतर इतना ही है कि इसका प्रारंभ मान्चिने