पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२२३

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भारतीय संपत् १६३ . कृष्णा १ से नहीं किंतु उससे सात महीने बाद मेष संक्रांति (सौर वैशाख)मे होता है और महीने सौा है जिससे उनमें पक्ष और तिथि की गणना नहीं है. जिम दिन मंक्रांति का प्रवेश होता है उसके दूसरे दिन को पहिला दिन मानते हैं. इस सन में ५६३-६४ जोड़ने से ई. स. और ६५०-१ जोड़ने मे वि सं. बनता है. ३२-मगि सन् मगि सन् बहुधा बंगाली सन के समान ही है. अंतर केवल इतना ही है कि इसका प्रारंभ बंगाली मन मे ४५ वर्ष पीछे माना जाता है. इस लिये इममें ६३८-३६ जोड़ने से ई. म. और ६९५- ६६ जोड़ने से वि. म. बनता है इसका प्रचार बंगाल के चिटागांग जिले में है. अनुमान होता है कि वहांवालों में बंगाल में फमली मन का प्रचार होने मे ४५ वर्ष पीछे उसको अपनाया हो. इस सन के 'मगि' कहलाने का टीक कारण ती ज्ञात नहीं हुमा परंतु ऐसा माना जाता है कि भारा- कान के राजा ने ई. स. की। वीं शताब्दी में विटागांग जिला विजय किया था और ई स. १६६६ में मुगलों के राज्य में वह मिलाया गया तब तक यहां पर सवानियों अर्थात् मगों का अधिकार किसी प्रकार बना रहा था. मंभव है कि मगों के नाम से यह मगि सन कहलाया हो' ३३-इलाही सन बादशाह अवघर के धर्मसंबंधी विचार पल्टने पर उसने 'दीन इ-इलाही' नाम का नया धर्म चलाने का उद्योग किया जिसके पीछे उसने 'इलाही सन चलाया. अबदुल कादिर बदायूनी, जो अघबर के दरबार के विद्वानों में से एक था, अपनी 'मुंतरू बुरूवारीख' में लिखता है कि 'बादशाह अपवर ने हिजरी सन को मिटा कर तारीख-इ-इलाही नाम का नया मन घलाया जिसका पहिला वर्ष बादशाह की गद्दीनशीनी का वर्ष था. वास्तव में यह सन बादशाह अक्सर के राज्यवर्ष २६ वें थीत हिजरी सन ६६२ (ई. स १५६४ ) से चला परंतु पूर्व के वर्षों का हिसाष रूगा कर इसका प्रारंभ अवघर की गही नशीनी के वर्ष से मान लिया गया है. अक्षर की गद्दीनशीनी तारीख २ रसीलरसानी हिजरी सन १६३ (ई म. १५५६ तारीख १४ फरवरी-वि. सं १६१२ फाल्गुन कृष्णा ४) को हुई थी परंतु उसी दिन मे इसका प्रारंभ माना नहीं गया किंतु उससे २५ दिन पीछे तारीख २८ रपी- उस्मानी हि.स. १६३ (ई.स. १५५६ तारीख ११ मार्च-वि. सं. १६१२ चैत्र कृष्णा अमावास्या) से, जिम दिन कि गिनियों के वर्ष का पहिला महीना फरवरदीन लगा, माना गया है. इम मन के वर्ष सौर हैं और महीनों तथा दिनों (तारीखों) के नाम ईरानी ही हैं. इस में दिनों (तारीखों) की संख्या नहीं किंतु १ से २ तक के दिनों के नियत नाम ही लिखे जाते थे, पनि, जि १३. पृ.५००:२१ वां संस्करण इलाही सन् के १२ महीनों के नाम ये है-१ फरवरदीन: २ उर्दिबहिश्त, ३ थुर्दाद. ४ तीर.५ अमरदाद, ६ शहरेवर, ७ महर. ८ श्रावां (प्राधान : ६ आज़र (आदर), १० दे. ११ यहमन · १२ अम्फंविधारमा ये नाम रंगनियों के यज्दजर्द सन के ही लिये गये हैं ४. ईरानियों का वर्ष मौर वर्ष है उसमें तीस तीस दिन के १२ महीने है और १२ 4 महीने में ५ दिन गाथा (बहुनवद् ओश्नवढ़, म्पतोम, बहुक्षध्र और हिश्तायश्त ) के मिलाकर ३६५ दिन का वर्ष माना जाता है और .२० वर्ष मै १ अधिक मास महीनों के क्रम से जोड़ा जाता है जिसको कबीसा' कहते हैं, परंतु इलाही सन के महीने कुछ २६ दिन के, कुछ ३० के. कुछ ३१ के और एक ३२ दिन का भी माना जाता था और वर्ष ३६५ दिन का होता था एवं चौथे वर्ष १ दिन और जोड़ दिया जाता था महीनों के दिनों की संख्या किस हिसाब से लगाई जानी थी इसका ठीक हाल मालूम नहीं हो सका १ से ३२ तक के दिनों के नाम ये है- १ अहुर्मद . २ बहमनः २ उर्दिबहिश्त. ४ शहरेवर ५ स्पंवारमद. ६ खुद ७ मुग्दाद ( अमरदाद ), देशादर प्राज़र ( भादर ). १० प्रायां (आबान ) ११ खुरशेन्; १२ माह ( म्होर ). १३ तीर: १४ गोशः १५ देपमेहर, १६ मेहर्ः १७ सरांशः १८ रश्नह: १६ फरवरदीन: २० बेहराम, २१ राम. २२ गोवाद. २३ देपदीन; २४ दीन २५ अर्द (अशीश्वंग ). २६ प्रास्ताद, २७ प्रास्मान्. २८ ज़मिश्राद्: २६ मेहरेस्पंद. ३० अनेरां: ३१ रोज़.३२ शब. इनमें से ३० तक के नाम तो ईरानियों के दिनों (तारीखो) केही है और अंतिम दो नये रक्खे गये है . .