६ प्राचीनलिपिमाला. . महावग्ग' (विनय पिटक का एक ग्रन्थ) में लेखा' (लिग्वना), 'गणना' (पहाड़े) और 'रूप (हिसाब) की पढ़ाई का', जातकों में पाठशालाओं तथा विद्यार्थियों के लिखने के 'फलक (लकड़ी की पाटी)का' और 'ललितविस्तर में बुद्ध का लिपिशाला में जाकर अध्यापक विश्वामित्र से चंदन की पाटी पर सोने के वर्णक' (कलम) से लिम्वना सीखने का वृत्तान्त मिलता है'. ऊपर उद्धृत किये हुए वचन ई.स. पूर्व की छठी शताब्दी के आस पास की दशा के पोधक हैं और उनसे पाया जाता है कि उस समय लिग्वने का प्रचार एक साधारण बात थी; स्त्रियां तथा पालक भी लिम्बना जानते थे और प्रारंभिक पाठशालाओं की पढ़ाई ठीक वैसी ही थी जैसी कि अब तक हमारे यहां की देहाती खानगी पाठशालाओं की है, जिनमें लिम्बना, पट्टीपहाड़े और हिसाब पढ़ाये जाते हैं. जष हमारे यहां की प्रारंभिक पढ़ाई का ढंग ई.स. पूर्व की छठी शताब्दी के आसपास से अब तक, अर्थात् करीव २५०० वर्ष मे, बिना कुछ भी परिवर्तन के ज्यों का न्यों चला आया है तब आश्चर्य ही क्या है कि बुद्ध के समय भी बहुत पूर्ववर्ती काल से वैमा ही चला आता रहा हो. महाभारत, स्मृति (धर्मशास्त्र), कौटिल्य के अर्थशास्त्र', वात्स्यायन के कामसूत्र' आदि ग्रंथों में, जिनमें व्यावहारिक विषयों का विशेष रूप से वर्णन मिलना है, 'लिम्वना' और 'लिम्बित पुस्तकों का उल्लेव बहुत कुछ मिलना है. पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' नामक व्याकरण का ग्रन्थ लिम्वा, जिसमें 'लिपि' और आधा कपच यावरया 7 1 . ४ ५ . उपालि के मातापिता ने गजगृह में विचार किया कि बछ को क्या काम मिखावें उन्होंने निश्चय किया कि यद्यपि लेखा, गणना और रूप सिखाने से भविष्य में उसको लाभ होगा परंतु इन नीनों से क्रमशः अंगुलो. छाती और प्रांखों को क्लेश होगा, इसमे उन्होंने उम बौद्ध भिक्षु (श्रमण) बनाना निश्चय किया क्योंकि श्रमण सदाचारी होते हैं. बाने पीने को उन्हें अच्छा मिलता है और लाने को अच्छे बिछाने (महावग्ग ! ४. भिक्खुपानित्तिय ६५... कलिंग के गजा खारवल के हाथोगुंफा के लख में उक्त गजा का लख. रूप और गणना मीखना लिखा है मिती संयमपणनावबहारविधिविभारदं न भवविजायानेन हाथीगुंफा गंड ध्री अटर इन्क्रिपशन्स भगवानलाल इंद्रजी मंपादित. पृ २२ गुलाम कटाहक सेठ के पुत्र का फलक उठा कर उसके माथ पाठशाला जाया करता था वहीं उसने लिखना पढना सीखा किटाहक जानक। गजपताना में अब भी लकड़ी की गोल नीख मुंह की कलम का जिममें बच्चे पट्टे पर मुरवा बिछा कर अन्तर बनाना सीखते हैं, यग्या या बग्नना कहते हैं ललितविस्तर. अध्याय १० अंगरजी अनुवाद पृ १८६-५. महाभाग्न के कर्ता व्यास ने स्वयं गणेश को ही उक्त पुस्तक का लखक बनाया ह (आदिपर्व, ११२). वसिष्ठधर्ममत्र (१६१०१४-१५ मे न्यायका के पाम लिम्वित प्रमाण पेश करना और मनुस्मृति ( १८) में जबन लिखवाये हुए लेख को अप्रमाणित करना लिग्बा है मार्ग म्मृतियों में जहा जहां लख का विषय है उसकी परिमंख्या नही हो सकती, केवल दो उदाहरण दिये गये है अर्थशास्त्र में बहुन जगह लिखने का वर्णन है, जिसमें में थोड़ से उदाहरण यहा दिये जाते हैं. मलका लिपि माश्याम चांपए ग्रीन । २). मजामिपिभिवाग्मचार पुर्य । पचम मरिपरिषदा पत्रमप्रेषयाम मयंतापमान्यमापन पर्वममविदासपन्याहरी संबवाचनममयी मंच म्यान । ०६२८) यह पिछला अवतरण शासनाधिकार में म है जिसमें गजशासनों के लिखने का ही विषय है अर्थशास्त्र का कर्ता कौटिल्य मौर्य चंद्रगुम का मंत्री विष्णुगुप्त चाणक्य ही था. चौसठ कलानी में पुमाकवाचमम् (पृ३३), घर में रखने की मामग्री में 'य कश्चित्पुना (४५) भार्या के प्रतिदिन कामों में प्रामद और खर्च का हिमाब रखना 'देवमिकामयपियोकर याम (१२३८) मॅक्समूलर, धूलर आदि कितने एक यूगपिनन् विद्वान् पानि काई म पूर्व की चौथी शताब्दी में होना मानते है और पाणिनीय व्याकरण के अद्वितीय शाता गोल्डस्टकर ने पारिपनि का बुद्ध में पूर्व होना मामा है इनमें से गोल्ड- स्टकर का लिखना डीक जचता है, क्योंकि पाणिनि मे बहुत समय पीछे कात्यायन ने उनके सूत्रों पर 'वार्तिक' लिखे इसका प्रमाण यह है कि वार्तिकों में न केवल पाणिनि के छोड़े हुए प्रयोगों और प्रयों का स्पष्टीकरण है बग्न बहुत से नये प्रयोगों और नय अर्थों का भी विचार है, जो पाणिनि के पीछे व्यवहार में आये होंगे पाणिनि से [कमसे कम तीन पीढ़ी] पीछे दाक्षायण व्याडि ने पाणिनि के सत्रों पर 'मंग्रह' नामक व्याख्यानम्प ग्रंथ रचा भर्तृहरि ने अपने 'वाक्यपदीय 2 .
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