पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/४६

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२० प्राचीनलिपिमाला हुए बत- ई म. १८६५ में बलर ने 'भारतवर्ष की ब्रामी लिपि की उत्पत्ति' विषयक एक छोटी पुस्तक अंग्रेज़ी में लिम्वी. जिसमें चंबर का अनुकरण कर यह मिट्ट करने का यत्न किया गया कि ब्राह्मी लिपि के २२ अक्षर उत्तरी सेमिटिक लिपियों मे लिये गये और बाकी के उन्हींपर में बनाये गये हैं, अर्थात् कितने एक अक्षर प्राचीन फिनिशिअन् अक्षरों मे, कुछ मोअब के राजा मंशा के लेव के फिनिशिअन अक्षरों मे और पांच अक्षर असीरिया के तालों पर खुदे हुए अक्षरों से मिलने लाये हैं. इसमें बहुत कुछ वैचतान की गई है जिसके विषय में आगे लिग्वा जायगा. वलर के उक्त पुस्तक के प्रकट होने के बाद चार और विद्वानों ने भी प्रमंगवशात् इस विषय में अपनी अपनी संमति प्रकट की है. उनमें में प्रॉ. मॅक्डॉनल्ड' बृलर के मत को स्वीकार करता है. डॉ. राइस डेविड़ज़ ने इस विषय के भिन्न भिन्न मतों का उल्लंग्व करने के पश्चात् अपनी संमति इस तरह प्रकट की है कि मै यह मानने का माहम करना है कि इन [भिन्न भिन्न ] शोधों के एकीकरण के लिये केवल यही कल्पना हो सकती है कि ब्राह्मी लिपि के अक्षर न तो उत्तरी और न दक्षिणी सेमिटिक अक्षरों में बने हैं, किंतु उन अक्षरों में जिनमें उत्तरी और दक्षिणी मेमिटिक अक्षर स्वयं बने हैं अर्थात युफ्रंटिम नदः की वादी की मेमिटिक में पूर्व की किसी लिपि मे.' डॉ. थार्नेट बृलर का ही अनुमरण करना है और प्रो. रॅपमन्' ने उपर्युक्त माअय के लंग्स की फिनिशिअन लिपि से ब्रामी लिपि की उत्पत्ति मानी है. इस प्रकार कई एक युरोपिअन विद्वान ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये हिअरटिक (मिमर की), क्युनिफॉर्म (असीरिया की), फ़िनिशिअन . हिमिअरेटिक (मेषिन), अग्महक, और स्वरोष्ठी लिपियों में में अपनी अपनी मचि के अनुमार किमी न किमी एक की शरण लेते हैं. आइज़क टेलर इनमें से किमी में भी ब्राह्मी में ममानता न दंग्य आमन, हॅड्रमाँट या ओर्मज़ के ग्वंडहगं में में किमी नई लिपि के मिलने की राह दंग्वता है और डॉ. गडम डविडज युफ्रंटिम नदी की वादी में में सेमिटिक लिपियों से पूर्व की किमी अज्ञात लिपि का पता लगा कर उपर्युक्त भिन्न भिन्न मत। का एकीकरण करने की आशा करता है. यदि ऊपर लिग्बी हुई लिपियों में में किमी एक की ब्राह्मी के माथ कुछ भी वास्तविक ममानता होती तो मर्वथा इनन भिन्न मत न होन: जिम लिपि में ममानता पाई जानी उमीको मय बीकार कर लेने, परंतु "मा न होना ही उपर्युक्त भिन्न भिन्न कल्पनाओं का मूल हुआ जो माथ ही माथ उन कल्पनाओं में हठधर्मी का होना प्रकट करता है. यह तो निश्चित है कि चाहे जिन दो लिपियों की वर्णमालाओं का परम्पर मिलान करने का उद्योग किया जावे तो कुछ अक्षरों की प्राकृतियां परस्पर मिल ही जाती हैं चाहे उनके उच्चारणों में कितना ही अंतर क्यों न हो. यदि ब्रामी लिपि का वनमान उर्द लिपि के टाइप (छाप के अक्षरों) मे मिलान किया जावे तो ब्राह्मी का 'र' । (अलिफ) में, 'ज' (न्) में, और 'ल' (लाम) में मिलता हुआ है. इसी तरह यदि ब्राह्मी का वर्तमान अंग्रेजी (रोमन) टाइप से मिलान किया जाये तो 'ग' A (ए) से, 'ध'D (डी) में, 'ज'E (ई) म. 'र' । (श्राड) मे, 'ल' J (ज) मे, 'उ' (गल) मं. 0 (ओ) में, 'प'U (यू) मे, 'क' x (कम) में और ओ z (जेंड्) मे बहुत कुछ मिलना हुआ है. इम प्रकार उर्द के तीन और अंग्रेजी के दश अक्षर ब्राह्मी से आकृति में मिलने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि ब्राह्मी लिपि उर्दू या अंग्रेजी में निकली है क्यों कि ममान उच्चारण वाले एक भी अक्षर में (सिवाय उर्द के 'लाम्' और ब्रामी के 'ल' के) ममानना, जो लिपियों के परस्पर संबंध को निश्चय करने की एक मात्र कमौटी है, पाई नहीं जाती. 1 . मकः हि मं लि पृ १६ या पृ२२५ . E