प्राचीनलिपिमाला .1 ऊपर कर दिया है अथवा [ख] अक्षरों का श्राड़ा कर दिया है और [कितनं एक] के कोणों को रवोल दिया है। फिनिशिअन और ब्राह्मी की लंग्वन प्रणाली एक दूसरे में विपरीत होने के कारण बहुत में अक्षरों की परस्पर समानता बनलाने में बाधा पड़ती थी जिसके लिये बूलर ने यह मान लिया कि 'ब्राह्मी लिपि का झरव पलटने से (अर्थात् जो लिपि पहिले दाहिनी ओर मे बाई ओर लिग्बी जानी थी उसे पीछे मे बाई और में दाहिनी ओर लिग्वन से) कितनं एक [ममिटिक] अक्षरों का कम्व ग्रीक अक्षरों की नाई दाहिनी ओर से बाई आर को बदल गया. जब इन फेरफारी से भी काम न चला तय बूलर ने २२ अक्षरों में में प्रत्येक की उत्पत्ति बनला ने के समय बहुत से और फेरफार भी मान लिये जिनमें मे मुख्य ये हैं:- कहीं लकीर को कुछ [इधर उधर ] हटा दिया', जहां लकीर न भी वहां नई ग्वांच दी', कहीं मिटा दी', कहीं बढ़ा दी,कहीं घटा दी , कहीं नीचे लटकती हुई लकीर ऊपर की तरफ़ फिरा दी, तिरछी लकीर सीधी करदी, आड़ी लकीर ग्बड़ी करदी", दो लकीरों के बीच के अंतर को नई लकीर से जोड़ दिया", एक दूसरी को काटने वाली द लकींग के स्थान में बिंदु बना दिया", बाई तरफ मुड़ी हुई लकीर के अंत को ऊपर बढ़ा कर गांठ बनादी', त्रिकोण को धनुषाकार बना दिया", कोण या कोणों को मिटा कर उनके स्थान में अर्धवृत्त सा बना दिया आदि. इतना करने पर भी मान" अक्षरों की उत्पत्ति तो ऐसे अक्षरों से माननी पड़ी कि जिनका उच्चारण बिलकुल बमेल है. ऊपर यनलाये हुए फेरफार करने पर फिनिशिअन् अक्षरा से ब्राह्मी अक्षरों की उम्पत्ति बूलर ने किस तरह सिद्ध की जिसके केवल चार उदाहरण नीचे दिये जाने हैं :- १-अलफ से 'अ *** " से घ BB DLL ३-योध से 'य Z ZEtwtet ४-मम् से 'म इन चारों अक्षरों की उत्पत्ति में पहिला अक्षर प्राचीन फिनिशिअन् लिपि का है और अंतिम अक्षर अशोक के लग्वा स है. बाकी के मब अक्षर परिवर्तन की धीच की दशा के मन्त्रक अनु- मान किये गये हैं कहीं लिखे हुए नहीं मिले. इन रूपान्नगं का विवरण यह है कि:- - - . " lu बू; ई.प. पृ ११. ब्राह्मी लिपि पहिले दाहिनी ओर से बाई र लिखी जानी थी या नहीं यह विचार श्राग किया जायगा. ४ अलफ सं 'अ' की उत्पत्ति में...प. पृ. १२. ज़ाइन् से 'ज' की उत्पत्ति में 'ज' के बीच की बाड़ी लकार, ज़ाइन स ज की उत्पत्ति में, हंथ में 'घ' की उत्पत्ति म. धम'घ' की उत्पत्ति में. ज़ाइन सज की उत्पत्ति में ज़ाइन के ऊपर पार नीचे की दाना पार्डी लीग के बाई तरफ बाहर निकले दुए अंशों का कम करना. र योध से 'य' की उत्पत्ति में. नृन में 'न' की उत्पत्ति में, योध म य की उत्पत्ति में. दालथ में 'ध' की उत्पत्ति मे. वाब 'व' की उत्पनि में. तथ सेथ की उत्पति में. मम् से 'म' की उत्पत्ति में. दालय में 'ध की उत्पत्ति म. मेम से 'म' की उत्पत्ति में. ७ दालथ (द । से 'ध'की. (F) में 'घ' की, नथ ।न) में 'थ' का मामख स) से 'प' की के (फ) से 'प' की. न्माध (स) से 'च'का श्रीर कोफ किस ख की ए.सा.नि.जि १, पृ. ६०० में तथा डॉ...गडिजर संपादित और पाग्यधित जनिअस कहिव ग्रामर (व्याक- रण ) में हम अक्षर का नाम चंथ ( च ) लिखा है (पृ. १३ ) परंतु यंबई की छपा हुई 'हिन प्राइमरी गडर' नामक छोटी पुस्तक में, जिसमें हिव अक्षरा के नाम तथा उच्चारण अंग्रेजी श्रीर मगठ। (नागरी लिपि) दानाम दिय है, इसका नाम 'हेथ्' (पृ. १ ) और इसका धनिमूचक चिक 'ह' (पृ. ३ ) दिया है. इसी ग्रीक (यूनानी ) अक्षा पटा' बना जिसमें अंग्रेज़ी का H (ऍच्) अक्षर, जी 'ह' की ध्वनि का सूचक है, तथा इसनिअरी का है, जो 'ह' का सूचक है. निकला है अत एव हमने इस अक्षर का नाम 'हिय प्राइमरी रीडर' के अनुसार 'हेथ् लिखा है. " 2- ve
पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/५०
दिखावट