पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/५१

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ब्राह्मी लिपि को उन्पति. १-अलेफ के पहिले म्प का कम्व बदलने में दूसरा रूप बना. दमर की ग्वड़ी लकीर को दा हिनी तरफ़ हटाने से नीमरा बना. उसपर सं चौथा रुप बन गया २-हेथ् के पहिले रूप की बड़ी लकीरों को ममान लंबाई की यनाने और तीनों आड़ी लकीरों को मीधी करने में दूसरा रूप बना. इम प्रकार मांध बने हुए बड़े अक्षर को भाड़ा करने से नीसरा रूप बना, जिसके ऊपर के भाग की श्राड़ी लकीरों को मिटा देने मे चौथा रूप बना. फिर बाई श्रीर की पहिली बड़ी लकीर को लंबी कर देने से पांचवां म्प बन गया. ३-योध की मय निग्छी लकीरों को मीधी कग्न से दमरा रूप बना. जिमका ग्व बद- लन मतीमरा रुप बना इम ग्वड़े अक्षर को आड़ा करने में चौथा रूप बना उसकी नीचे लट- कर्ता हुई लकीर को ऊपर की तरफ़ फिरा देने मे पांचवां रूप बना. जिसकी मध्य की बड़ी लकीर की लंबी करने में छटा रूप बना और उमपर मे मानवां ४-मेम के नीचे वाली बाई ओर मुड़ी हुई लकीर को ऊपर की तरफ बढ़ा कर ग्रंथि यना दन में इसग रूप बना. फिर ऊपर के बाई तरफ के कोण वाले हिस्मों को मिटा कर उनकी जगह अर्घवृत्त मी रंग्वा बना देने में नीमरा म्प बना. उमक ग्रंथि वाल भाग को बढ़ा कर ऊपर निकालने से चौथा रूप बन गया. बेलर के माने हुए अक्षरों के ये फेरफार प्रेम है कि उनके अनुसार अक्षरा का नोड़ मरोड़ करने में केवल फिनिशिअन में ब्राम्मी की उत्पनि बतलाई जा मकीमा ही नहीं, किंतु दुनिया भर की चाह जिम लिपि में किसी भी लिपि की उत्पत्ति प्रामानी में मिद हो मरनी है उदाहरण के लिये तनशिला के अरमहक लिपि कं लग्न के अक्षरा में नया वर्तमान अंग्रेजी टाइप । छापे के अन्नरों) में ब्रामी लिपि के अन्तर कितनी अामानी में बनाये जा मकते हैं यह नीव याताया जाता- क्षशिला के लग्न - १-अलफ में 'अ-XXH २-बंध म ब:-) ) ३-गिर्मल मे ग-AM ४-दालथ में द म है - म 7-) ja इन अक्षरों के रूपांतग में प्रत्यक का पतिला म्प नशिला क लग्न में लिया गया है और अंतिम रूप अशोक के लग्त्रों के अनुमार है. बीच के परिपनन वलर के माने हा नियमों के अनु- मार अनुमान किये गये हैं, जिनका व्यौरा इस तरह है- १-अलेफ कं पहिलं म्प के ऊपर के नवा नीचे के कानों को कुछ चाई करने में दूसरा रूप बना. उसकी दाहिनी तरफ की दोनों तिरछी लकीगे को सीधी करने में नीमग म्प बन गया. २-बंध के पहिले रूप के ऊपर की छोटी मी ग्वट्टी लकार को मिटाने में दमग रप बना. की पाई तरफ एक बड़ी लकीर ग्वींचने मे नीमरा म्प बन गया. ३-गिर्मल ग म मिलता ही है ४-दालेथ के पहिलं रूप के नीचे की ग्नड़ी लकीर के माथ बाई नरक एक आई लकार जोड़ने से दूसरा रूप बना और उम नई जुड़ी हुई लकीर के बाएं किनार पर जरामी छोटी बड़ी लकीर जोड़ने मे नीमरा रूप बन गया. ५-हे के पहिले रूप को उलट देने से दमरा रूप बना: उमका मन्च पलटने से तीसरा रूप बन गया जो अशोक के मारनाथ के लेग्व के 'ह' से मिलता हुआ है और. चौथा म्प गिरनार के लेग्व में है. उम-