२६ प्राचीनलिपिमाला ६-वाव के पहिले रूप को उलटन में दूसरा रूप बना, जिसका रुख पलटने से तीसरा बना, फिर उसकी दाहिनी तरफ़ की झुकी हुई लकीर के स्थान में ग्रंथि पना देने से नौथा रूप पना वर्तमान अंग्रेजी छापे के अक्षरों मे- मे ' AAHH २-बी में 'य B B ३-'सी' में dd ४-'डी' मे 'द E [r ६-ऑफ' में Ft bb इनमें में प्रत्येक अक्षर के रुपांतरों में पहिला प वर्तमान अंग्रेजी छापे का अक्षर और अं- तिम रूप अशांक के लेग्बों में है. बीच के कुल म्प बलर के सूत्रों के अनुमार अनुमान किये हैं जिनका विवरण हम तरह है- - के पहिले म्प के ऊपर के कोण को बोल देने में दमग रूप बना, निमकी दोनों तिरछी बड़ी लकीरो को मीधी करने में नीमरा म्प हुआ और उसमें चौथा. २-बी' की बीच की लकीर को मिटान में दमग म्प और उमी दाहिनी तरफ़ की वक्र ग्वा को सीधी करने से नासग यना. ३ 'सी' की दाहिनी तरफ़ एक बड़ी लकीर जाड़न मे दमरा म्प बन गया और उसमे तीमरा. ४-'डी' की बाई ओर की बड़ी लकीर को मिटाने में दमरा रूप बना. जिमके यांई तरफ के किनारों के माथ एक एक छोटी बड़ी लकीर जोड़ने में नीमरा रूप बन गया. y ई' की बीच की लकीर मिटा देने में दमरा रूप: उमकी दाहिनी तरफ की दोनों लकीरो को तिरछी करने मे नीमरा म्प और उमम चौधा बन गया ६ ॉफ का उलटने से दसरा म्प बना, जिमकं नीचे की दाहिनी तरफ़ की दो बाड़ी लकीरों को एक बड़ी लकीर में जोड़ देने में नीमरा रूप और उममे चौधा बन गया मन्नशिला के अरमहक लग्न में नया अंग्रेजी के छात्र के अन्नगं में ब्राह्मी लिपि की उत्पनि बताने में फिनिशिअन की अपेक्षा अधिक मरलना होने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उनसे ग्रामी अक्षर बने हैं. गमी दशा में वृलर का मत किस तरह ाकार नहीं हो सकता क्योंकि फिनि- शिअन के गिमल (ग) और ब्राझी के ग को छोड़ कर अन्य किसी ममान उच्चारण वालं अक्षर में समानना नहीं है. बृलर का मारा यन्न ग्वींचनान ही है. इमीम वलर की 'भारतवर्ष की ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के छपने के याद 'बुद्धिस्ट इंडिया' नामक पुस्तक के कर्ता डॉ. गहम डेविडज़ को यह मानना पड़ा कि ब्राह्मी लिपि के अन्नर न तो उत्तरी और न दक्षिणी ममिटिक अक्षगं मे बने हैं, ऐसे ही पनमाइक्लोपीडिया ब्रिटॅनिका नामक महान अंग्रेजी विश्वकांश में इस विषय में यह लिग्वा गया कि 'बूलर का कथन यद्यपि पाण्डित्य और चतुराई में भरा हुया है तो भी यह मानना पड़ता है कि वह अधिक निश्चय नहीं दिलाता. इम लिपि का उद्भव कहां मे हुआ इसका निर्णय निश्चित रूप मे कर- ने के पहिले हमके प्राचीन इनिहाम के और भी प्रमाणों का ढूंढना आवश्यक है, और प्रेम प्रमाण मिल सकेंगे इसमें कोई संदेह नहीं'. यदि ग्रामी और ग्वरोष्ठी दोनों लिपियां फिनिशिअन् मे, जिमी उत्पत्ति ई.स. पूर्व की १० वीं शताब्दी के आम पाम मानी जाती है, निकली होती तो ई.स. पूर्व की तीसरी शताब्दी में, अर्थात् अशोक के ममय, उनमें परस्पर बहुत कुछ ममानता होनी चाहिये थी जैमी कि अशोक के ममय की . । देखो ऊपर, २० ए., ब्रि, जि ३३, पृ०३
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