५४ प्राचीनलिपिमाला. समनस माहरखितास पालेवासिस छोपुषस सावकाम उतरदासकस पसादो तोरनं. 'अधिनाया रामओ शोन- कायनपत्रस्य बंगपालस्य पुरस्य रमे मओ) नेवणौपुत्रस्य भगवतस्य पुत्रेण वैहिदरौपचेण अ(चा पाढमे मे न कारितं. लिपिपत्र छठा मोड़ा है यह लिपिपत्र कुशनवंशी राजाओं के ममय के मथुरा'. सारनाथ और चारगांव मे मिल लग्वों सं तय्यार किया गया है मथुरा के कई एक लग्वों से अक्षर छांटे गये हैं, जिनमें कई अक्षगं के एक मे अधिक रूप मिलने हैं जो भिन्न भिन्न लेखकों की लेखन मच्चि की भिन्नता प्रकट करते हैं. पहिली 'द में तीन बिंदियों के स्थान पर तीन आडी रेखाएं बना दी हैं और दूसरी 'इमें दो आड़ी लकीरों के आगे दाहिनी और एक बड़ी लकीर बनाई है 'उ (पहिले) की दाहिनी ओर की आड़ी लकीर को नीचे की तरफ़ यही मोड़ पड़ने पर नागरी का 'उ' बनता है ( देवो, लिपिपत्र २ में नागरी 'उ की उत्पत्ति) दृमरा व तीसरा नागरी 'ए' से कुछ कुछ मिलने लगा है. 'एके पांचों रूप एक दमर से भिन्न हैं 'न' के दूसरे रूप के मध्य में गांठ बनाई है जो कलम को उठाये बिना पूरा अक्षर लिग्बने में ही बनी है वैसा ही 'न' लिपिपत्र १२, १६.६, ७,३८, ३६ आदि में मिलता है पहिले पल और तीसरे '4' के रूप नागरी के 'प' 'ल' और 'ष मे किमी प्रकार मिलने हुए हैं. 'वा', 'रा और 'पा' में 'आ' की मात्रा की आडी लकीर ग्वड़ी या तिरछी हो गई है. और 'ई' की मात्राओं के मूल निज मिट कर उनके नये म्प बन गये हैं (देखो. णि, थि, वि, मी) 'ए और ऐ की मात्राएं नागरी के ममान बन गई है संयुझाक्षरों में दम आने वाले का मृल रूप नष्ट हो कर नागरी के 'य में मिलता जुलता म्प बन गया है, परंतु सारनाथ के लग्न में उमका मूल रूप और चारगांव के लग्न में दोनों म्प काम में लाये गये हैं. लिपिपत्र लुट की मृल पंक्तियों का नागरी अक्षरांनर- महागजस्य गजातिग[जाम्य देव चम्य पाहिणिष्कस्य ७ हे १ दि १०५ एतस्य पूर्व ा।या अर्घ्य देहि किया. तो गणाता अर्यनागभुतिकियाती कुलातो गणिश्र अर्य- बुद्धशिरिम्य शिष्या वाचको अार्यसनिव.स्य भगिनि अर्यज- लिपिपत्र साता यह लिपिपत्र महाक्षत्रप नहपान के जामाता शक उपवदात ( ऋषभदत ) और उसकी स्त्री दक्षमित्रा के नासिक के पास की गुफाओं (पांडव गुफाओं ) के ४ लेग्वों" से नय्यार किया गया है. . ५ १ पंई, जि २. पृ २०० के पाम का प्लट, लग्न, एं.: जि २ पृ२४३ के पास का प्लेट • . जि १. पृ ३८८ से ३६७ के बीच के पलट, और जि २, पृ २२० म २०६ के बीच के प्लेटों के कई लेखों से ४ :जि ८, पृ १७६ के पास का प्लेट, लेख, ३ (A) श्राम.ई.ई स. १०८६. प्लेट ५६ ये मूल पंक्तियां . इं, जि१. मथुरा के लेख, १६ से है. , सं-संवत्सर - संवत् हेहेमंत र दिदिवसे. १० ५ = १५ ये अंक प्राचीन शैली के है, जिसमें शून्य का व्यवहार न था उसमें १० सेहत के लिये। चित्र दहाइयों के नियत थे (देखो, आगे अंको का विवेचन ). ॥ [ .जि ८ प्लेट ४ लेख संख्या १०. प्लेट ७ संख्या ११: प्लेट ५. सं १२, प्लेट ८, सं १३ मा सके.ई. जि.., प्लेट ४२ लेख संख्या ५, ७, और १०(A) (मासिक) १०
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