ब्राह्मी लिपि ५५ इसी लिपिपत्र के आधारभूत एक लंग्व में हलंत व्यंजन पहिले पहिल मिलता है, जिसको सिरों की पंक्ति से नीचे लिया है. इसके अतिरिक्त हरत और सस्वर रंजन में कोई अंतर नहीं है. मृ के साथ की 'क' की मात्रा नागरी की 'ऊ' की मात्रा में मिलनी हुई है. में 'श्रा की मात्रा रंफ के माथ लगाई है और स्वरों की संधियां यहुधा नहीं की हैं लिपिपत्र सानवें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- सिद्धम् गजः सहगलस्य क्षचपस्य नहपानस्य जामा- चा दीनीव पुषेण उपवदातेन विगोशतसहस्रदेन न- द्या(द्यां) बार्णामायां मवर्णदानतीर्थकरेण देवताभ्यः ब्राह्मगो- भ्यश्च पोडशग्रामदेन अनुव ब्राह्मणशतमहसौ. भोजापायचा प्रभामे पुण्यतीर्थे बाह्मणेभ्यः अष्टभार्याप्रटेन भरुष दशपुरे गोवर्धन शोरगे च चतुशालावमध- प्रतियप्रदेन श्रागमतडागाउदपानकोण बापारदादमणा. तापी कर बेरगावाहनभानागपुग्यतरनरेगा तामां च नदी- लिपिपत्र प्राध्या या लिपिपत्र उपर्युक्त अशोक के लेंग्ववाले गिरनार के पास के चटान की पिहली तरफ़ बुदं हुए महामनप दामन के लेग्च की अपने हाथ में नय्यार की हुई छाप में बनाया गया है. यह लग्व शक संवत ७ (ई म... : में कुछ पीछे का है दम लग्न में पाक माथ जो 'श्री की मात्रा जुट्टी है वह तो अशांक के ग्यां की शैली में ही है और 'यो के माथ की मात्रा उसीका परि- वर्तित मप है जो पिछले लग्न में भी कुछ परिवर्तन के माय मिल पाता है, परंतु 'नौ और 'मा के माथ जी श्री की मात्रा जुड़ी है वह न नां अशोक के ले.ग्वा में और न उनमे पिछन्न किसी लग्न में मिलती है अतएव मंभव है कि वह चिन अशोक में पर्व का हो हलंत व्यंजन इममें भी पंक्ति में नीच लिग्ना है. लिपिपत्र पाठवें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- पामलक्षणव्यंजनैरुपेतकान्तमृतिना स्वयमधिगतमहाक्षत्रप- माम्ना मरेंद्रकान्यास्वयंवगनेकम ल्यमापदाम्ना महापरण रुद्रदाम्ना वर्षसहसाय गोब्रा. र्य धम्मको तिवृदयष्टं च अपोडीयत्वा करविष्टिप्रणयक्रियाभिः परजानपदं जने स्वस्मात्कोश [] महतः धनाधन अनतिमहता च कालन चिगुणदृढता विस्तारायामं से विधा . . सुदर्शनतरं कारितमिलि...स्मिन] महाक्षचप्स्य मतिसचिवकर्मसचिवै- रमात्यगुणसमुद्युक्तैरप्यात महत्वाऽदस्यानुत्साहविमुखमनिाम- । ये मूल पंक्तियां ..जि - प्लेट ४. लेख संख्या १० से है २ देखो. ऊपर पृ३. टिप्पण
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