पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/८९

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कुटिल लिपि ६३ मोखरियों के लेख और मुद्रा', वर्मलात के समय के वसंतगढ़ के लेख', राजा हर्ष के दानपत्रादि ', नेपाल के अशुवर्मन के लेम्वों", मेवाड़ के गुहिल वंशी राजा शीलादित्य और अपराजित के लेन्वों', मगध के गुसवंशी आदिन्यसेन और जीवितगुप्त (दसर) के लेग्वा, कुदारकोट के लेख , झालरा- पटण से मिले हुए राजा दुर्गगण के लेखों , कोटा के निकट कणस्वा ( कण्वाश्रम) के मंदिर में लगी हुई राजा शिवगण की प्रशस्ति', बनारस से मिले हुए पंथ के लग्य', कामां ( कामवन ) से मिले हुए यादवों के लेख", लाखामंडल की प्रशस्ति", चंया राज्य से मिले हुए राजा मेरुवर्मन के लेखों", राजपूताना और मालवं से मिले हुए प्रतिहार (पड़िहार ) वंशियों के लेग्वादि" o । मौखरी( मुखरवंशी गजा ईशानवर्मन का ६डाहा का शिलालख वि सं ६११ ( म ५५४) का है (सरस्वती, ई.स १६१६, पृ १-८३ ) अासीरगढ़ से मिली हुई ईशानवर्मन के पुत्र शर्थवर्मन की मुद्रा में काई संवत् नही है (फली . गु , सेट ३०A). अनंतवर्मन के बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों की गुफाओं के लेखों (क्ली; गुप्लेट ३०11. ३१ ॥ और 1 ) में भी संपत् नही मिलता परंतु उम्मका ई म की छटी शताब्दी के अंत के आस पास होना अनुमान किया जा सकता है. जौनपुर का लेख भी जिसका प्रारंभ का हिम्सा बचने नहीं पाया, संभवतः उपर्युक्त ईशानवर्मन के समय का हो (फली, गु, ग्लट ३२ A). '. यह लेख वि मं ६८२ ई. स ६२५-६) का है (.ई. जि.१६० के पास का लेट). • वैसवंशी गजा हर्ष का बंसखडा का दानपत्र हर्ष संवत् २२ (वि सं १८६) का । .जि ४, पृ २२० के पास का प्लेट) और मधुवन में मिला हुआ दानपत्र हर्ष संवत् २५ ( स. ६३१ : का है (ऍ; जि १ पृ ७२-७३ ). सोनपत से मिली हुई उन गजा की मुद्रा (पली गु ई. प्लेट ३२ ) मे संवन् नहीं है अंशुधर्मन के समय के लेखो में एक म संवत् २१६ । या ३१८?) है (ईए.जि १४, पृ: ज ने, पृ ७४) जिमको गुप्त संवत् माना जाये तो उसका समय ई. ५ ६३५-६ (या ६३७-८ ? होगा उसके दुसी लबों में संवत् ३४, ३६ ४५ (१) और ४ मिलत है (. ज नं. पृ. ४ इंग जि ६१.७०-७१). यदि इन संबतों को हर्ष मंवन् माने तो इनका समय । सं. ६४०से ६५४नक स्थिर होगा . मेवाड़ के गुहिलयंशी गजा शालादिन्य । शोल्न । के समय का एक शिलः लेख वि सं ७०३ (ई म ६४६ ) का मेवाड़ के भीमट इलाके के मामाली गांव में मिला ह जो मन गजपताना म्यूज़िश्रम | अजमेर ) को भेट किया यह लेख अभी तक छपा नहीं है गजा प्रागजिन कालख वि सं (ईस १६१ : का है (0. ई. जि४, पृ ३० के पास का लंट) , आदित्यमन के समय के. नीन लवों में से दो में संवत् नहीं है । ती गुड पट २८, र पृ. २१२ ) परंतु तीमग जो शाहपुर से मिली हुई मूर्य की माने कामन पर खुदा है [वर्ष ] संवन् ६६ ई स ६७२ ) का है ( ली . गु. प्लेट २६.) प्रादित्यसन के प्रपत्र जीवितगुप्त ( दूसर । के समय का एक लेख देवबनकि म मिला है वह भी बिना संवत् का है (ली: गुट २६ :). • कुदारकोट के लख मे संवत् नहीं है परंतु उसकी लिपि आदि से उसका समय ई. स. की सातवीं शताब्दी अनुमान किया जा सकता है (जि १ पृ १८० पाम का प्लेट) झालरापाटण से मिल हुए गजा दुर्गगण के दो लेख एक ही शिला पर दोनों ओर ग्युदं है जिनमें से एक वि सं ७४६ ई स ६८ ) का है (0. जि... पृ १८१८२ के बीच के प्लंट) • शिवगण की कग्णस्वा की प्रशस्ति वि सं १५ (ईस 50 ) की है। : जि १६, पृ. ५८ के पास का प्लंट) इस लेख में संघन नहीं है परंतु इसकी लिपि ई. स की ७ वी शताब्दी के आस पास की अनुगन की जा सकती है। जि ६, ६० के पास का सट) इस लेख में संवत् नहीं है परंतु इसकी लिपि ईस की पाठर्घ शताब्दी की अनुमान की जा सकती है ( एं: जि. १०. पृ ३४ के पास का प्लेट । " मढ़ा के लक्रवामंडल मामक मंदिर को प्रशस्ति में संवत् नहीं है परंतु उसकी लिपि ई. स की आठवीं शताब्दी के आसपास की प्रतीत होती है (... जि १, पृ. १२ के पास का प्लेट) । मेरुषर्मन के पांच लेखों में से एक शिला पर ( वो. ऍ. चं. स्टे: प्लेट ११) और चार पित्तल की मूर्तियों के पास मों पर खुदे हुए मिले हैं (वॉ: ए. चं. स्टे; प्लेट १०). उन सब में संवत् नहीं है परंतु लिपि के आधार पर उनका समय इसकी आठवी शताब्दी माना जा सकता है १४ प्रतिहार राजा नागभट का बुवकला का लंख वि. म. ८७२ (ई. स. ८१५) का (एँ जि.पृ. २०० के पास प्लेट ); बाउक का जोधपुर का वि. सं ८६४ (ई स. ८३७ ) का (ज. रॉ ए. सो. स. १८६५ पृ. ४); कक्कुक का घटिमाले का वि. सं १८ (इ. स.८६१) का (ज. रॉ प. सो: स. १६५ पृ. ५१६); भोजदेव (प्रथम) का वि सं १०० का दानपत्र (जि.५ पृ. २११-२): और शिलालेखा जिन में से देवगढ़ का वि. स. ११६ ( स ८६२) का 5 19 "