पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/९३

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कुटिल लिपि. लिखा है. कुदारकोट के लेम्व में हलंन का पिक ऊपर से तथा वर्तमान चित्र के समान नीचे मे भी बनाया है. कांटा के लेख में ' (पहिला) वर्तमान नागरी 'म' से बहुत कुछ मिलता हुमा है और 'त्' को चलनी कलम से लिग्व कर हलंत के चित्र को मूल अक्षर में मिला दिया है जिससे उसका रूप कुदारकोट के लेम्ब के 'त' से भिन्न प्रतीत होता है. लिपिपत्र २१३ की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- बों नमः शिवाय घों नमः स्स(स)कलसंसारमागरो- जारहेतवे । तमोगाभिसंपातहलालंबाय शम्भवे॥ वेतहीपानुकाराx कचिदपरिमितैरिन्दुपादैः पहित्यिस्थै- लिपिपत्रवां यह लिपिपव चंबा के राजा मेम्वी के ५ लखों से नव्यार किया है. उक्त लग्यों में से गूगाव का लेख शिला पर खुदा है और बाकी के पित्तल की मूर्तियों पर मूर्तियों पर के लखों से उद्धन किये अक्षरों में कितने एक अक्षरों के एक में अधिक रूप मिलन है जिसका कारण यह है कि ये सय लग्न एकही नवक के हाथ से लिग्वे नहीं गये और कुछ अन्तर कलम को उठाये बिना लिम्व ही ऐमा प्रतीत होता है. 'न का पहिला रूप नागर्ग के 'म से मिलना हुआ है. उक्त अक्षर का ऐसा रूप अन्यत्र भी मिलता है (टेम्बा लिपिपत्र में बुचकला के लेख के अक्षरों में ). 'न के नीसरे रूप में बीच की ग्रंथि उलटी लगाई है. 'र का दूसरा रूप उलटा लिया गया के समान लिग्वा है और रंफ को पंक्ति के ऊपर नहीं किंतु पंक्ति की सीध में लिखा है. लिपिपत्र की मृल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- ओं प्रामाद' मेरुसाशं हिमवन्नमभिः कृत्वा स्वयं प्रवरकर्म शुभैरने कैः महन्द्रशाल रचितं नवनामनाम' प्राग्यौवकैविविधमण्डपनेः कचिस्वैः' । नस्याग्रतो रषभ पौ". मकपोलकायः मंश्लिष्टवक्षककुदोबतदेवयानः" श्रोमेरु- वर्मचतुर्गदधिकोतिरेषाः" मातापितः" मततमात्मफ- लिपिपत्र २३ यह लिपिपत्र प्रतिहार गजा नागभट के ममय के बुचकला के लख", प्रतिहार बाउक के जोध- पुर के लेन" तथा प्रतिहार कक्कुक के घटिमान के नम्ब" में नव्यार किया गया है. बुचकला के लेव में 'न नागर्ग के 'म में मिलना हुआ है. 'ह की प्रकृति नागरी के ‘ड के समान है और 'समें 'म उलटा जोड़ा है. जोधपुर के लग्व के अधिकतर अधर नागरी के ममान हो गये हैं. + . य मूल पंक्रिया कोटा के लेख मे.जि . के पास का प्लेट) फो. मं स्ट, प्लेट ०. ये मूल पंक्रिया मंदी की मूर्ति के तेल से उड़ती गई हैं (फो , चं से प्लेट १०) इनमें मड़ियां पाहुन है इस लिय उम मूल रे साथ ) बिके भीतर नहीं किंतु टिप्पणों में शुद्ध यिा है. साद पनि 1. नयनाभिरामा. 'विधमण्डपर्नेक " 'पमः पी. १५ पक्षककुदुन्नतदेवयानं ॥ चतुरुदधिकार्तिरेचा. १४ मातापित्रो. १४ जि.२००के पास का प्लेट. " गजपूताना म्युज़िमम् : अजमेर ) में रक्खे हुऐ मूल लेख की अपने हाथ से तय्या की दुई छाप से. " प्रमिद इतिहासवेत्ता जोधपुर के मुली देवीप्रसाद की मेजी हुई बाप से. "