पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/९२

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प्राचीनलिपिमाला. लिपिपत्र १६ वें की मूल पंक्तियों' का नागरी अक्षरांतर- भों पासौत्सर्बमहीक्षितामनुरिव वत्तस्थिनेशिकः श्रीमाग्मत्तगजे. खेलगमनः बोयज्ञवर्मा कपः यस्याइतसहसनेविरक्षामा सदैवाध्वरैः पौलोमो चिम्मश्रुपातमलिनमा) धत्ते कपोलश्रियं । पोशार्दूलहपान्मजः परहितः श्रोपौरुषः श्रूयते लोके चन्द्रम- लिपिपत्र २० वां यह लिपिपत्र उदयपुर के विक्टोरिमा हॉल में रक्खे हुए मेवाड़ के गुहिलवंशी गजा अपराजित के समय के वि. मं. ७१८ ( ई. स ६६१) के लेग्व की अपने हाथ से नय्यार की हुई छाप से बनाया नाया है. इसके 'थ' और 'श' नागरी के 'थ' और 'श से मिलते जुलनं ही हैं केवल ऊपर की गांठे उलटी हैं. 'य के प्राचीन और नवीन (नागरी के मदृश ) दोनों रूप मिलते हैं. 'मा' की मात्रा चार प्रकार में बनाई है. 'जा और 'हा' के ऊपर 'श्रा की मात्रा ( "मी लगी है, जिसकी स्मृति अब तक कितने एक पुस्तकलंम्बकों को है क्योंकि जब वे भूल से कहीं 'भा की मात्रा छोड़ जाने हैं और व्यंजन की दाहिनी ओर उसको लिग्वने का स्थान नहीं होता नथ व उम के ऊपर चिट लगा देते हैं. हम लम्व में अक्षरों नथा स्वरों की मावात्रों में मुंदरता लान का यन कर लेम्वक ने अपनी चित्रनिपुणता का परिचय दिया है (देखा, जा, टा, ग.पि. रि, हि, ही, ने, ले, ने, वै, यो, को. यौ, मो, त्य, प्र, व्य, श्री). लिपिपत्र की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- राजा श्रीगुहिलाम्वयामलपयोराशे स्फुरदौधिनिधस्तवाससमूहदुष्ट- सकलबालावलेपान्तहत् । श्रीमानित्यपराजिनः क्षितिभृतामन्यानो मूर्धभिः(मिहत्तस्वच्छतयेव कौस्तुभमणि तो जगदृषणं । शिवाम- बोखण्डितशक्तिसंपडुर्यः समाक्रान्तभुजगशः] । मेनेन्द्रवत्स्कन्द इव प्रणेता तो महाराजवराहमिंह: जनगृहौतमपि वववर्षित धक्समप्यनुरनितभूतलं थिरमपि प्रविकामि दिशो दश भमनि लिपिपत्र २.वा. यह लिपिपत्र बंसखेडा से मिल हुए राजा हर्ष (हर्षवर्द्धन ) के दानपव. नेपाल के राजा अंशु- जर्मन के लम्ब', राजा दुर्गगण के झालरापाटण के लेम्ब'. कुदारकोट के लेख तथा राजा शिवगण के कोटा के नेव' में नय्यार किया गया है. हर्ष के दानपत्र में प्राचीन अक्षगं की पहिली पंक्ति के से प्रनक के अक्षर उद्धृत किये हैं और अंतिम पांच अदर ( 'ध' से 'श्री नक) उत दानपत्र के अंत के हर्ष के हस्नाचरों में लिये गये हैं जो चित्रलिपि का नमूना होने के माथ ही माय उक्त राजा की चित्रविद्या की निपुणना प्रकट करते हैं. झालरापाटण के दम्ब में विसर्ग की दोनों विवियों को .

ये मूल पंक्तियां मौखरी ( मुखर ) वंशी राजा अनंतवर्मन् के नागार्जुनी गुफा के लेख में उद्धत की गई है (क्ली ,

एं; जि ४ पृ २१० क पास का प्लेट प: जि १७, पृ. १७०के पाम का प्लेट. झालरापाटण (कावनी ) में रक्ले हुए मूल संबकी अपने हाथ मे तय्यार की हुई दोनों ओर की पापों से. • . जि. १. पृ१८०के पास का प्लेट. ....जि १६, पृ.५८ के पास का पोट.