पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/९९

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शारदा लिपि. १२६४) के संघा नामक पहाड़ के लेख और मेवाड़ के गुहिलवंशी रावल समरसिंह के समय के चीरवा गांव से मिले हुए वि. सं. १३३० (ई.स.१२७) के लेख' से तय्यार किया गया है. ओरिया गांव के लेख में 'ध' के सिर नहीं है परंतु 'ध' को 'व' से स्पष्ट रूप से भिन्न यनलाने के लिये व के ऊपर बाई ओर ( ऐसी लकीर जोड़ दी है. यह रूप पिछले नागरी के लेग्वा तथा पुस्तकों में मिल पाता है. संधा के लेग्य की लिपि जैन है. उसके 'छ', '8' आदि अक्षरों को अब नक जैन लेग्नक वैसा ही लिखते हैं. 'गण' को, 'ण'लिग्बके बीच में बाड़ी लकीर लगा कर बनाया है. यह रूप कई लेखों में मिलता है और अब तक कई पुस्तकलेग्वक उसको ऐमा ही लिग्वते हैं. चीरवा के लग्ब में 'ग्ग को 'ग्र का सा लिग्वा है और अन्य लेखों में भी उसका ऐसा रूप मिलता है, जिमको कोई कोई विद्वान् ‘ग्र पढ़ते भी हैं परंतु उक्त लेग्व का लेग्वक बहुन शुद्ध लिग्वनेवाला था अन एव उमने भूल मे मर्वत्र ग्ग' को 'ग्र' लिग्व दिया हो यह संभव नहीं. उमने उम ममय का 'ग्ग का प्रचलित रूप ही लिग्वा है जिसका नीचे का अंश प्राचीन 'ग' का ही कुछ विकृत रूप है, जैसे कोई कोई लेग्वक वर्तमान नागरी के 'क और 'कको 'क' और 'क' लिग्वते हैं जिनमें वर्तमान ' क ' नहीं किंतु उमका प्राचीन रूप ही लिग्चा जाता है. लिपिपत्र ७वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- मंवत् १२६५ वर्षे ॥ वैशाखशु १५ भोमे । चोलक्य- वशोवरण परमभहारकमहागाधिगजश्रीमद्भौमदेवप्र- वईमानविनयराज्य श्रीकरणे महामुद्रामात्यमह.. भाभप्रभृतिममम्तपंचकुल परिपंथयति चंद्राक्तीनाथमां- डालकसरशंभौधागवर्षदेव एकातपत्रवाहकत्वेन है शारदा । करमौगे। लिपि. म.की. वी शतानी कायपास में (लिपिपत्र २८ ) शारदालिपि पंजाय के अधिकतर हिस्से और कश्मीर में प्राचीन शिलालग्बों, दानपत्रों, सिक्कों तथा हस्तलिम्बित पुस्तकों में मिलती है. यह लिपि नागरी की नाई कुटिल लिपि में निकली है. ई.म.की - वीं शताब्दी के मेस्वर्मा के लेग्बों में पाया जाता है कि उस समय तक तो उधर कुटिल लिपि का ही प्रचार था, जिसके पीछे के स्वाइम (मइ ) गांव से मिली हुई भगवती की मूर्ति के आसन पर खुदे हुए सोमट के पुत्र राजानक भोगट के लेख की लिपि भी शारदा की अपेक्षा कुटिल से अधिक मिलती हुई है. शारदालिपि का सप से पहिला लेख सराहां की प्रशस्ति है जिसकी लिपि ई. म. की १०वीं शताब्दी के भासपास की है. यही समय शारदा लिपि की उत्पत्ति का माना जा सकता है. १ जोधपुर निवासी मेरे विद्वान् मित्र मुन्शी देवीप्रसाद की भेजी हुई छाप से वीरया गांव के मंदिर की भीत में लगे हुए उक्त लेख की अपने हाथ से तग्यार को हुई छाप से . ये मून पंक्तियां उपर्युक्त ओरिया गांव के लेख से है. ४ कश्मीर के उत्पलवंशी राजाओं के सिको में. १. देखो, लिपिपत्र २२ वां. . फोएँ. स्टे:पृ१५२, प्लेट १३ देखो, लिपिपत्र २८ वा. कांगड़ा जिले के कोरमाम के वैजनाथ (वैद्यनाथ)नामक शिवमंदिर में जालंधर (कांगड़े)