पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९४ )

सेल्यूकस के भेजे हुए राजदूत मेगास्थनीज़ के विररण में दी हुई है। उससे तथा मुद्राराक्षस नाटक के वर्णित पाटलिपुत्र की स्थितियों में यह विभिन्नता है कि पहले समय में वह गंगाजी तथा सोन नदी के मध्य में था पर दूसरे समय सोन के दक्षिण और गंगाजी के तट पर था। इस कारण यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कवि ने अपने ही समय की स्थिति का नाटक में समावेश किया है। अब यह विचारणीय है कि यह स्थिति-परिवर्तन कब हुआ। फाहियान ने पाँचवीं शताब्दि के आरंभ के पाटलिपुत्र का जो वर्णन दिया है, यह नाटककार के समय के पाटलिपुत्र का चित्र सा ज्ञात होता है।

ऊपर लिखे गए अनेक विद्वानों के सिद्धान्तों तथा तर्कों पर विचार करने से जो सार निकलता है, वह संक्षेपतः इस प्रकार है। प्रो० विलसन के सिद्धान्तों की खंडनात्मक आलोचना करने पर जस्टिस तैलंग ने लिखा है कि यदि इसे निस्सार न माना जाय तो यह आठवीं शताब्दि का द्योतक हा सकता है। मुद्राराक्षस से जो अश अन्य ग्रंथों में उद्धृत किए गए हैं, उनसे यह निश्चित हो जाता है कि यह सं० १०४४ से पूर्व की रचना है। भरतवाक्य के विषय में तर्क करते हुए उसका निर्माणकाल एक प्रकार निश्चित सा किया गया है। पाटलिपुत्र की स्थिति पर विचार करते हुए जस्टिस तैलंग ने आठवीं शताब्दि में निर्माण-काल का होना संभवित माना है पर अन्य प्रकार से विचार करने पर उसका चौथी शताब्दि के आसपास होना अधिक संभव है। नाटकोल्लिखित स्थानों तथा जातियो के विचार