की बदबू नहीं मिट पाई है। क्या ये आशावादी बतलाएँगे कि उस समय से अब तक कितने प्रतिशत हिंदू अधिक साक्षर हो गए हैं। हाँ, अवश्य इतने दिन में हिंदुओ ही की संख्या प्रतिशत घट गई है इसलिए कोरे हिसाब ही से साक्षर आप ही बढ़ गए होगे। ईश्वर न करे पर यदि इस दृष्टि-कोण से साक्षर बढ़े तो जहाँ तक न यह प्रतिशत गणना पहुँच जाय।
भारतेन्दु जी ने देश-काल-समाज के अनुसार साहित्य को प्राचीन रूढिगत विषयों में संकुचित न रखकर, नए नए क्षेत्र जोड़कर अधिक विस्तृत किया था। इन सभी नए पुराने क्षेत्रों में देश भक्ति के रंग ही का प्राधान्य था। राजभक्ति, लोक-हित, समाज-सेवा सभी में देशभक्ति व्याप्त थी वा यों कहा जाय कि इनकी देशभक्ति मूल थी तथा राजभक्ति, लोक-हित, मातृभाषा-हितचिंतन आदि उसी की शाखाएँ थीं। यही कारण है कि उनकी समग्र कृति में देश के प्रति उनका जो प्रेम था वह किसी न किसी रूप में स्पष्ट होता रहता है। भारत की कथा के तीन स्पष्ट विभाग है और इन तीनों की भारतेन्दु जी ने जो मार्मिक व्यंजना की है उसे पढकर सहृदयों के हृदय में अतीत के प्रति गर्व, वर्तमान के लिए क्षोभ और भविष्य के लिए मंगल-कामना एक के बाद दूसरी उठकर उन्हे उद्वेलित कर देती है।
किसी स्थान विशेष की दुर्दशा का वर्णन तभी किया जाता है जब वह पहिले बहुत ही समुन्नत अवस्था में रहा हो। भारत पहिले कितनी उन्नत अवस्था में था, इसका कवि ने बहुत उदात्त पूर्ण वर्णन किया है पर साथ ही ध्यान रहे कि वह सब कविता भारत की दुर्दशा देखकर कवि के दग्ध हृदय से निकली है।