है। गोवर्द्धनदास को भिक्षा के लिए 'लोभ पाप का मूल" उपदेश देकर भेजते हैं। भारतेन्दु जी के एक दरबारी इसी नाम के थे, जिनमें मुटाई ताजगी के साथ लोभ की मात्रा भी प्रचुरता से थी। यह हर फन मौला भी थे और स्यात् उन्हीं को दृष्टि में रखकर यह चित्रण हुआ है।
दूसरे अंक में बाजार का दृश्य है । हर एक विक्रेता अपनी अपनी वस्तु की प्रशंसा कर अंत में कहता है कि टके सेर है। काशी का घासीराम का चना प्रसिद्ध है । चना बेंचने वाला काशी की तत्कालीन प्रसिद्ध वेश्याओं तौकी, मैना, गफूरन और मुन्नी का नाम लेता है। इनमें प्रथम दो प्रसिद्ध गायिका थीं। तीसरी पटने के किसी नवाब साहब के हरम में चली गई। चना खाते समय डाढ़ी का हिलना भी खूब रहा । दूना टिकस का मत पूछिए । अभी भूकंप के ठीक बाद काशी के नए पुराने मकानों की कीमत डेवढ़ी दूनी असेस की गई है। मकानो की मालियत बढ़ाने का यह अनूठा नुस्खा स्यात् इसी चना के खाने के बाद सूझा रहा होगा । नारंगी वाली भी नौ रंग की बात कह गई, अश्लील बात भी रंगीन होकर श्लील रह गई।
कुंजड़िन द्वारा हिन्दुस्तान के मेवा फूट और बैर की की गई प्रशंसा सच्ची ही है, क्योकि यह प्रतिदिन अनुभूत हो रही है। मुगल भी टके सेर के मेवे की तारीफ करते हुए हिंदुस्तान पर आक्षेप कर रहा है । क्यो न करे ? पाचकवाला बहुत कुछ कह गया है । अमले रिश्वत क्यों न खायँ ? देने वाला कह नहीं सकता, क्योंकि देना स्वयं स्वीकार करते ही वह तो फँस जायग