पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/११८

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और लेना साबित करना कठिन । महाजन जमा की रकम इसी के जोर पर हजम कर जाते हैं पर क्या वे ऐसा करने पर महा+जन रह जायेगे ? पहिले और अब भी अदालतों में लाला लोगों की भरमार है और इसी कारण इन्हें बुद्धि का अजीर्ण रहना स्वाभाविक है। संपादक लोग बात पचा नहीं सकते, यह ठीक ही लिखा गया है। अभी ठाकुर-चतुर्वेदी की कथा नई ही है। साहब लोग चार सहस्र मील से क्या यहाँ तीर्थ करके तथा परोपकार करके पुण्य संचित करने आए हैं। अपने परिश्रम का फल लूट रहे हैं, इसमें हिंदू छीजें या सीझें। पुलिस वालों को कानून से क्या ? वे न कानूनदाँ, न कानूनगो । उन्हें अपने काम से काम । जात वाला खूब कह गया, पक्का अनुभवी था पर पचास साठ वर्ष पहिले ही का न था, अब उसने बहुत उन्नति कर ली है। टका लेना दूर अब कुछ देकर भी जाति बदलने को तैयार है । कुएँ पर पानी पीने न दो, मंदिर में जाकर पैसा चढ़ाने को मना करो, बस जाति धर्म सब कुछ देने को तैयार । धर्म भी क्या बच्चों की लंगोटी हो गई, जब चाहा उतार कर नंगे हो गए । अस्तु, इस प्रकार गोबरधनदास जी बाजार घूमकर, आवाजे सुनकर तथा भाव पूरी तौर जाँचकर मिठाई लेकर चल दिए।

तीसरे अंक में गुरु जी ने अंधेरनगरी का हाल देखकर वहाँ न रहना निश्चय किया पर गोबर्द्धनदास ने उपदेश न सुना और वहीं रह गया।

चौथे अंक में उसी प्रकार दरबार का तमाशा दिखलाया