पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१२२

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इस रूपक में सावित्री तथा सत्यवान का अच्छा चरित्र चित्रण हुआ है। यह उपाख्यान साधारण प्रेम-वासना पूर्ण नहीं है पर उस अलौकिक प्रेम से भरा हुआ है जो सदा अमर रहेगा। वास्तव में पुरुष की शक्ति ही कितनी है, जो शक्तिरूपिणी सती के सम्मुख आँख उठा सके। आँखे तो आप ही उसके चरण की ओर वंदना के लिए झुक जायँगी। इस रूपक में बहुत से अनूठे पद सतीत्व-माहात्म्य पर दिए गए हैं, जिनकी विवेचना के लिए स्थानाभाव है।