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धनंजय-विजय
व्यायोग
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हेमाद्रिकलशा यत्र, धात्री छत्रश्रियं दधौ॥
(सूत्रधार आता है)
सू०-(चारों ओर देखकर) वाह ! वाह ! प्रातः काल की कैसी शोभा है!
(भैरव)
बिकसे कमल, उदय भयो रवि को, चकई अति अनुरागीं॥
हंस-हंसिनी पंख हिलावत, सोइ पटह सुखदाई।
आँगन धाइ धाइ कै भँवरी, गावत केलि बधाई॥