यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६
भारतेंदु-नाटकावली
मरन-हेतु आयो इतै इकलो गरब बढ़ाय॥
अ०-(हँसकर)
इकले खांडव दाहि, उमापति जुद्ध प्रचार्यौ॥
इकले ही बल कृष्ण लखत भगिनी हरि द्यौनी।
दु०-अब हँसने का समय नहीं है; क्योकि अंधाधुंध घोर संग्राम का समय है।
अ०-(हँसकर)
पापीगन मिल द्रौपदि को दासी कीनी जित॥
यह रन-जूआ जहाँ बान-पासे हम डारै।
दु०-(क्रोध से)
नर्त्तनसाला जाव किन, इत पौरुष परकास॥
कु०-(मुँह चिढ़ाकर) आर्य ! यह आप ठीक कहते है कि इनका बहुत दिन से धनुष चलाने का अभ्यास छूट गया है।
तब करि अग्रज-नेह गरजि जिन तहँ सर साध्यौ॥