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धनंजय-विजय
कु०-(हँसकर) इनका सब प्रभाव घोष-यात्रा में प्रगट हो चुका है। (दूसरी ओर दिखाकर) यह किसका ध्वज है?
अ०-(प्रणाम करके)
श्वेत केस मिस सो कीरति मनु तन लपटाई॥
परशुराम को तोष भयो जा सर के त्यागे।
सूत ! घोड़ो को बढ़ाओ।
(नेपथ्य में)
निज-बल बाहु-विचित्रता, अरजुन देहु दिखाइ॥
(इंद्र, विद्याधर और प्रतिहारी आते हैं)
इंद्र-आश्चर्य से
तो यह दारुन युद्ध लखि, क्यो न डरै जिय खोय॥
एक रथी इक ओर उत बली रथी समुदाय।
कु०-(आगे देखकर) देव, कौरव-राज यह चले आते हैं।
अ०-तो सब मनोरथ पूरे हुए।
(रथ पर बैठा दुर्योधन आता है)
दु०-(अर्जुन को देखकर क्रोध से)