पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४
भारतेंदु-नाटकावली
जो मो कहँ आनँद भयो करि कौरव बिनु सेस।
तुव तन को बिनु घाव लखि तासों माद बिसेस॥

कु०-जब आप सा रक्षक हो तो यह कौन बड़ी बात है।

इंद्र-(आनंद से) जो देखना था वह देख चुके।

(विद्याधर और प्रतिहारी समेत जाता है)

अ०-(संतोष से) कुमार !

करी बसन बिनु द्रौपदी इन सब सभा बुलाय।
सो हम इनको वस्त्र हरि बदलो लीन्ह चुकाय॥

कु०-आपने सब बहुत ठीक ही किया क्योंकि-

बरु रन मैं मरनो भलो पाछे सब सुख सींव।
निज अरि सो अपमान हिय खटकत जब लौं जीव॥

अ०-(आगे देखकर) अरे अपने भाइयों और राजा विराट समेत आर्य धर्मराज इधर ही आते हैं।

(तीनों भाई समेत धर्मराज और विराट आते हैं)

धर्म-मत्स्यराज! देखिए -

धूर धूसरित अलक सब मुख श्रमकन झलकात।
असम समर करि थकित पै, जय सोभा प्रगटात॥

विरा०-सत्य है।

द्विज सोहत विधा पढ़ें, छत्री रन जय पाय।
लक्ष्मी सोहत दान सों, तिमि कुलबधू लजाय॥