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भारतेंदु-नाटकावली
तुव तन को बिनु घाव लखि तासों माद बिसेस॥
कु०-जब आप सा रक्षक हो तो यह कौन बड़ी बात है।
इंद्र-(आनंद से) जो देखना था वह देख चुके।
(विद्याधर और प्रतिहारी समेत जाता है)
अ०-(संतोष से) कुमार !
सो हम इनको वस्त्र हरि बदलो लीन्ह चुकाय॥
कु०-आपने सब बहुत ठीक ही किया क्योंकि-
निज अरि सो अपमान हिय खटकत जब लौं जीव॥
अ०-(आगे देखकर) अरे अपने भाइयों और राजा विराट समेत आर्य धर्मराज इधर ही आते हैं।
(तीनों भाई समेत धर्मराज और विराट आते हैं)
धर्म-मत्स्यराज! देखिए -
असम समर करि थकित पै, जय सोभा प्रगटात॥
विरा०-सत्य है।
लक्ष्मी सोहत दान सों, तिमि कुलबधू लजाय॥