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धनंजय-विजय
जा सर सों तोर्यो मुकुट तासों हरतो सीस॥
प्रति०-देव अपने पुत्र का वचन सुना?
इंद्र-(विस्मय से)
भीम-प्रतिज्ञा सों बच्यो अनायास कुरुराय॥
विद्या०—देव ! दुर्योधन के मुकुट गिरने से सब कौरवों ने क्रोधित होकर अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया है।
इंद्र-तो अब क्या होगा?
विद्या०—देव अब आपके पुत्र ने प्रस्थापनास्त्र चलाया है।
सब अचेत सोए, भई मुरदा सी कुरु-सैन॥
इंद्र-युद्ध से थके वीरों को सोना योग्य ही है। हाँ फिर-
विद्या-
बॉधि अँधेरी आँख मैं, मूँड़ि तिलक सिर दीन॥
अब जागे भागे लखौ रह्यो न कोऊ खेत।
गोधन लै तुव सुत अबै ग्वालन देखौ देत॥
शत्रु जीति निज मित्र को काज साधि सानंद।
इंद्र-जो देखना था वह देखा।
(रथ पर बैठे अर्जुन और कुमार आते हैं)
अ०-(कुमार से) कुमार!