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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१५८

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सत्यहरिश्चंद्र

वह पहिले ही से जानी रहे तो मैं और सभी से कह के सावधान कर दूँ।

सूत्र०---आज का नाटक तो हमने तुम्हारी ही प्रसन्नता पर छोड़ दिया है।

नटी---हम लोगों को तो सत्यहरिश्चंद्र आजकल अच्छी तरह याद है और उसका खेल भी सब छोटे-बड़े को मँज रहा है।

सूत्र०---ठीक है, यही हो। भला इससे अच्छा और कौन नाटक होगा। एक तो इन लोगो ने उसे अभी देखा नहीं है, दूसरे आख्यान भी करुणा-पूर्ण राजा हरिश्चंद्र का है, तीसरे उसका कवि भी हम लोगों का एकमात्र जीवन है।

नटी---( लंबी साँस लेकर ) हा! प्यारे हरिश्चंद्र का संसार ने कुछ भी गुण-रूप न समझा। क्या हुआ "कहैंगे सबै ही नैन नीर भरि भरि पाछे प्यारे हरिचंद की कहानी रहि जायगी"।

सूत्र०---इसमें क्या संदेह है। काशी के पंडितो ही ने कहा है--

सब सज्जन के मान को कारन इक हरिचंद।
जिमि सुभाव दिन रैन को, कारन नित हरि-चंद॥


विद्वज्जनप्रतिष्ठाकारणमेको हरिश्चन्द्रः।
स्वभावगत्या दिनरात्र्योर्वा हरिश्चन्द्रः॥