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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१७६

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भारतेंदु-नाटकावली

गुरुजी से मेरी ओर से विनती करके दंडवत् कह दीजिएगा।

ब्रा०---जो आज्ञा।

[ आशीर्वाद देकर जाता है

रानी---आज महाराज अब तक सभा में नहीं आए?

सखी---अब आते होगे, पूजा में कुछ देर लगी होगी।

( नेपथ्य में बैतालिक गाते हैं )

[ राग भैरव ]

प्रगटहु रवि-कुल-रवि निसि बीती प्रजा-कमल-गन फूले।
मंद परे रिपुगन तारा सम जन-भय-तम उनमूले॥
नसे चोर लंपट खल लखि जग तुव प्रताप प्रगटायो।
मागध-बंदी-सूत-चिरैयन मिलि कल रोर मचायो॥
तुव जस-सीतल-पौन परसि चटकी गुलाब की कलियाँ।
अति सुख पाइ असीस देत सोइ करि अँगुरिन चट अलियाँ॥
भए धरम मैं थित सब द्विजजन प्रजा काज निज लागे।
रिपु-जुवती-मुख-कुमुद मंद, जन-चक्रवाक अनुरागे॥
अरघ सरिस उपहार लिए नृप ठाढे तिन कहें तोखौ।
न्याय कृपा सों ऊँच नीच सम समुझि परसि कर पोखौ॥

( नेपथ्य में से बाजे की धुनि सुन पड़ती है )

रानी---महाराज ठाकुरजी के मंदिर से चले, देखो बाजों का शब्द सुनाई देता है और बंदी लोग भी गाते आते हैं।