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भारतेंदु-नाटकावली

विश्वा०---छिः मूर्ख! भला हम दास लेके क्या करेंगे? "स्वयं दासास्तपस्विनः" ।

हरि०---( हाथ जोड़कर ) जो आज्ञा कोजिएगा हम सब करेंगे।

विश्वा०---सब करेगा न? ( ऊपर हाथ उठाकर ) धर्म के साक्षी देवता लोग सुनें, यह कहता है कि जो आप कहेंगे मैं सब करूँगा।

हरि०---हाँ हाँ, जो आप आज्ञा कीजिएगा सब करूँगा।

विश्वा०---तो इसी गाहक के हाथ अपने को बेचकर अभी हमारी शेष दक्षिणा चुका दे।

हरि०---जो आज्ञा। ( आप ही आप ) अब कौन सोच है। ( प्रगट धर्म से ) तो हम एक नियम पर बिकेंगे!

धर्म---वह कौन?

हरि०---

भीख असन कंबल बसन, रखिहैं दूर निवास।
जो प्रभु आज्ञा होइहै, करिहैं सब ह्वै दास॥

धर्म---ठीक है, लेव सोना। (दूर से राजा के आँचल में मोहर देता है)

हरि०--( लेकर हर्ष से आप ही आप )

ऋण छूट्यो पूरयो बचन, द्विजहु न दीनो साप।
सत्य पालि चंडाल हू होइ आजु मोहि दाप॥

( प्रगट विश्वामित्र से ) भगवन्, लीजिए यह मोहर।

विश्वा०---( मुँह चिढ़ाकर ) सचमुच देता है?